लूकस 19:28-48

लूकस 19:28-48 HINCLBSI

इतना कह कर येशु आगे बढ़े और यरूशलेम की ओर चढ़ना आरम्‍भ किया। जब येशु जैतून नामक पहाड़ के समीप, बेतफगे और बेतनियाह गाँव के निकट पहुँचे, तब उन्‍होंने दो शिष्‍यों को यह कहते हुए भेजा, “सामने के गाँव में जाओ। जब तुम वहाँ पहुँचोगे, तब तुम्‍हें खूंटे से बंधा हुआ गदहे का एक बछेरू मिलेगा, जिस पर अब तक कोई नहीं सवार हुआ है। उसे खोल कर यहाँ ले आओ। यदि कोई तुम से पूछे कि तुम उसे क्‍यों खोल रहे हो तो उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी जरूरत है।’ ” जो शिष्‍य भेजे गये थे, उन्‍होंने जा कर वैसा ही पाया, जैसा येशु ने कहा था। जब वे बछेरू खोल रहे थे, तब उसके मालिकों ने उनसे कहा, “इस बछेरू को क्‍यों खोल रहे हो?” उन्‍होंने उत्तर दिया, “प्रभु को इसकी जरूरत है।” वे बछेरू को येशु के पास ले आए और उस बछेरू पर अपनी चादरें बिछा कर उन्‍होंने येशु को उस पर बैठा दिया। ज्‍यों-ज्‍यों येशु आगे बढ़ते गये, लोग मार्ग में अपनी चादरें बिछाते रहे। जब वे जैतून पहाड़ की ढाल पर पहुँचे, तो पूरा शिष्‍य-समुदाय आनंदविभोर हो कर आँखों देखे सब आश्‍चर्यपूर्ण कार्यों के लिए ऊंचे स्‍वर से इस प्रकार परमेश्‍वर की स्‍तुति करने लगा : “धन्‍य है वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आता है! स्‍वर्ग में शान्‍ति! सर्वोच्‍च स्‍वर्ग में महिमा!” भीड़ में कुछ फरीसी थे। उन्‍होंने येशु से कहा, “गुरुवर! अपने शिष्‍यों को रोकिए।” परन्‍तु येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से कहता हूँ, यदि वे चुप रहे, तो पत्‍थर ही चिल्‍ला उठेंगे।” जब येशु निकट आए और नगर को देखा तो वह उस पर रो पड़े और बोले, “हाय! कितना अच्‍छा होता यदि तू, हाँ तू, आज के दिन यह समझ पाता कि किन बातों में तेरी शान्‍ति है! परन्‍तु अभी ये बातें तेरी आँखों से छिपी हुई हैं। तुझ पर वे दिन आएँगे, जब तेरे शत्रु तेरे चारों ओर मोर्चा बाँध कर तुझे घेर लेंगे, तुझ पर चारों ओर से दबाव डालेंगे, तुझे और तुझ में निवास करने वाली तेरी सन्‍तान को मिट्टी में मिला देंगे और तुझ में एक पत्‍थर पर दूसरा पत्‍थर पड़ा नहीं रहने देंगे; क्‍योंकि तूने उस शुभ घड़ी को नहीं पहचाना जब परमेश्‍वर ने तेरी सुध ली।” येशु ने मन्‍दिर में प्रवेश किया और बिक्री करने वालों को यह कहते हुए बाहर निकालने लगे, “लिखा है : ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्‍तु तुम लोगों ने उसे लुटेरों का अड्डा बना दिया है।’ ” येशु प्रतिदिन मन्‍दिर में शिक्षा देते थे। महापुरोहित, शास्‍त्री और जनता के नेता इस प्रयत्‍न में थे कि येशु का विनाश करें। परन्‍तु उन्‍हें नहीं सूझ रहा था कि क्‍या करें; क्‍योंकि सारी जनता येशु की बातें सुनकर मुग्‍ध थी।