येशु ने अपने शिष्यों से यह भी कहा, “किसी धनवान का एक प्रबंधक था। लोगों ने उसके स्वामी के सम्मुख उस पर यह दोष लगाया कि वह आपकी सम्पत्ति उड़ा रहा है। इस पर स्वामी ने उसे बुला कर कहा, ‘यह मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ, अपने प्रबंध का हिसाब-किताब दो, क्योंकि तुम अब से मेरे प्रबंधक नहीं रह सकते।’ तब प्रबंधक ने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं क्या करूँ? स्वामी मुझ से प्रबंधक का पद छीन रहा है। मिट्टी खोदने का मुझ में बल नहीं; भीख माँगने में मुझे लज्जा आती है। हाँ, अब समझ में आया कि मुझे क्या करना चाहिए, जिससे प्रबंधक-पद से हटाए जाने के बाद भी लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें।’ उसने अपने स्वामी के कर्जदारों को एक-एक कर बुलाया और पहले कर्जदार से कहा, ‘तुम पर मेरे स्वामी का कितना ऋण है?’ उसने उत्तर दिया, ‘सौ मन तेल।’ प्रबंधक ने कहा, ‘अपना ऋण-पत्र लो, और बैठो, और शीघ्र पचास लिख दो।’ फिर उसने दूसरे से पूछा, ‘तुम पर कितना ऋण है?’ उसने कहा, ‘सौ मन गेहूँ।’ प्रबंधक ने उससे कहा, ‘अपना ऋण-पत्र लो और अस्सी लिख दो।’ स्वामी ने अधर्मी प्रबंधक की प्रशंसा की; क्योंकि उसने चतुराई से काम किया था। इस युग की सन्तान अपनी पीढ़ी के साथ आपसी लेन-देन में ज्योति की सन्तान से अधिक चतुर है। “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, सांसारिक धन से अपने लिए मित्र बना लो, जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे शाश्वत निवास में तुम्हारा स्वागत करें। “जो छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार है, वह बड़ी बातों में भी ईमानदार है और जो छोटी-से-छोटी बातों में बेईमान है, वह बड़ी बातों में भी बेईमान है। यदि तुम सांसारिक धन में ईमानदार नहीं ठहरे, तो तुम्हें सच्चा धन कौन सौंपेगा? और यदि तुम पराये धन में ईमानदार नहीं ठहरे, तो तुम्हें तुम्हारा अपना धन कौन देगा?
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