लूकस 15:1-32

लूकस 15:1-32 HINCLBSI

येशु का उपदेश सुनने के लिए सब चुंगी-अधिकारी और पापी उनके पास आ रहे थे। फरीसी और शास्‍त्री यह देखकर भुनभुनाने लगे, “यह मनुष्‍य पापियों का स्‍वागत करता है और उनके साथ खाता-पीता है।” इस पर येशु ने उनको यह दृष्‍टान्‍त सुनाया, “यदि तुम में से किसी के पास एक सौ भेड़ें हों और उन में से एक खो जाए, तो क्‍या वह निन्‍यानबे भेड़ों को निर्जन प्रदेश में छोड़ कर नहीं जाता और उस खोई हुई भेड़ को तब तक नहीं खोजता रहता, जब तक वह उसे नहीं मिल जाती है? मिल जाने पर वह आनन्‍दित हो कर उसे अपने कन्‍धों पर बैठा लेता है और घर आ कर अपने मित्रों और पड़ोसियों को बुलाता है और उन से कहता है, ‘मेरे साथ आनन्‍द मनाओ, क्‍योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मुझे मिल गई है।’ मैं तुम से कहता हूँ, इसी प्रकार निन्‍यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्‍हें पश्‍चात्ताप करने की आवश्‍यकता नहीं है, उस एक पापी के लिए स्‍वर्ग में अधिक आनन्‍द मनाया जाएगा जो पश्‍चात्ताप करता है। “अथवा कौन ऐसी स्‍त्री होगी, जिसके पास दस सिक्‍के हों और उन में से एक खो जाए, तो बत्ती जला कर और घर बुहार कर सावधानी से तब तक न खोजती रहे, जब तक वह उसे मिल नहीं जाए? सिक्‍का मिल जाने पर वह अपनी सखियों और पड़ोसिनों को बुला कर कहती है, ‘मेरे साथ आनन्‍द मनाओ, क्‍योंकि मुझ से जो सिक्‍का खो गया था, वह मुझे मिल गया है।’ मैं तुम से कहता हूँ, इसी प्रकार परमेश्‍वर के दूत उस पापी के लिए आनन्‍द मनाते हैं जो पश्‍चात्ताप करता है।” येशु ने कहा, “किसी मनुष्‍य के दो पुत्र थे। छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा, ‘पिता जी! सम्‍पत्ति का जो भाग मेरा है, वह मुझे दे दीजिए’, और पिता ने उन में अपनी सम्‍पत्ति बाँट दी। थोड़े ही दिनों बाद छोटा पुत्र अपनी समस्‍त सम्‍पत्ति एकत्र कर किसी दूर देश को चला गया और वहाँ उसने भोग-विलास में अपनी सम्‍पत्ति उड़ा दी। जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में भारी अकाल पड़ा और वह कंगाल हो गया। इसलिए उसने उस देश के एक नागरिक के यहाँ आश्रय लिया, जिसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने भेजा। जो फलियाँ सूअर खाते थे, उन्‍हीं से वह अपना पेट भरने के लिए तरसता था, लेकिन कोई उसे कुछ नहीं देता था। तब वह होश में आया और यह सोचने लगा : ‘मेरे पिता के घर में कितने ही मजदूरों को आवश्‍यकता से अधिक रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ। मैं उठ कर अपने पिता के पास जाऊंगा और उन से कहूँगा, “पिताजी! मैंने स्‍वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्‍य नहीं रहा। मुझे अपने मजदूरों में से एक जैसा रख लीजिए।” ’ तब वह उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पड़ा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और वह दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्‍बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी! मैंने स्‍वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने के योग्‍य नहीं रहा।’ परन्‍तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, ‘शीघ्र अच्‍छे-से-अच्‍छे वस्‍त्र ला कर इस को पहनाओ और इसकी उँगली में अँगूठी और इसके पैरों में जूते पहना दो। मोटा पशु ला कर काटो ताकि हम खाएँ और आनन्‍द मनाएँ; क्‍योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है।’ और वे आनन्‍द मनाने लगे। “उसका ज्‍येष्‍ठ पुत्र खेत में था। जब वह लौटकर घर के निकट पहुँचा, तो उसे गाने-बजाने और नाचने की आवाज सुनाई पड़ी। उसने एक सेवक को बुलाया और उससे पूछा, ‘यह सब क्‍या हो रहा है?’ सेवक ने कहा, ‘आपके भाई आए हैं और आपके पिता ने मोटा पशु काटा है, क्‍योंकि उन्‍होंने उनको भला-चंगा वापस पाया है’। इस पर वह क्रुद्ध हो गया और उसने घर के भीतर जाना नहीं चाहा। तब उसका पिता उसे मनाने के लिए बाहर आया। परन्‍तु उसने अपने पिता को उत्तर दिया, ‘देखिए, मैं इतने वर्षों से एक गुलाम के समान आपकी सेवा कर रहा हूँ। मैंने कभी आपकी आज्ञा का उल्‍लंघन नहीं किया। फिर भी आपने कभी मुझे बकरी का एक बच्‍चा तक नहीं दिया, ताकि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्‍द मना सकूँ। पर जैसे ही आपका यह पुत्र आया, जिसने वेश्‍याओं के पीछे आपकी सम्‍पत्ति उड़ा दी है, आपने उसके लिए मोटा पशु काट डाला!’ इस पर पिता ने उससे कहा, ‘पुत्र, तुम तो सदा मेरे साथ रहते हो और जो कुछ मेरा है, वह तुम्‍हारा ही है। परन्‍तु हमें आनन्‍द मनाना और उल्‍लसित होना उचित ही था; क्‍योंकि तुम्‍हारा यह भाई मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है।’ ”

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