लूकस 13:1-22

लूकस 13:1-22 HINCLBSI

उस समय कुछ लोग येशु को उन गलीलियों के विषय में बताने आये, जिनका रक्‍त राज्‍यपाल पिलातुस ने उनके बलि-पशुओं के रक्‍त में मिला दिया था। येशु ने उन से कहा, “क्‍या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्‍य सब गलीलियों से अधिक पापी थे, क्‍योंकि उन पर ही ऐसी विपत्ति पड़ी? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; किन्‍तु यदि तुम पश्‍चात्ताप नहीं करोगे, तो तुम सब भी उसी तरह नष्‍ट हो जाओगे। अथवा क्‍या तुम समझते हो कि शिलोह की मीनार के गिरने से जो अठारह व्यक्‍ति दब कर मर गये, वे यरूशलेम के सब निवासियों से अधिक अपराधी थे? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। किन्‍तु यदि तुम पश्‍चात्ताप नहीं करोगे, तो तुम सब भी उसी तरह नष्‍ट हो जाओगे।” तब येशु ने यह दृष्‍टान्‍त सुनाया, “किसी मनुष्‍य के अंगूर-उद्यान में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल खोजने आया, परन्‍तु उसे एक भी नहीं मिला। तब उसने अंगूर-उद्यान के माली से कहा, ‘देखो, मैं तीन वर्षों से अंजीर के इस पेड़ में फल खोजने आता हूँ, किन्‍तु मुझे एक भी नहीं मिलता। इसे काट डालो। यह भूमि को क्‍यों छेंके हुए है?’ परन्‍तु माली ने उत्तर दिया, ‘मालिक! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद डालूँगा। यदि यह आगे फल दे, तो अच्‍छा; यदि नहीं दे, तो इसे काट डालिएगा’।” येशु विश्राम के दिन किसी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे। वहाँ एक स्‍त्री थी। उसे अठारह वर्ष से दुर्बल करने वाली आत्‍मा लगी थी। वह झुककर दुहरी हो गई थी और किसी भी तरह सीधी नहीं हो पाती थी। येशु ने उसे देख कर अपने पास बुलाया और उस से कहा, “नारी! तुम अपने रोग से मुक्‍त हो गयी।” और उन्‍होंने उस पर हाथ रखे। उसी क्षण वह सीधी हो गयी और परमेश्‍वर की स्‍तुति करने लगी। सभागृह का अधिकारी रुष्‍ट हो गया, क्‍योंकि येशु ने विश्राम के दिन उस स्‍त्री को स्‍वस्‍थ किया था। वह लोगों से कहने लगा, “छ: दिन हैं, जिन में काम करना उचित है। इसलिए उन्‍हीं दिनों स्‍वस्‍थ होने के लिए आओ, विश्राम के दिन नहीं।” परन्‍तु प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “ढोंगियो! क्‍या तुम में से हर एक व्यक्‍ति विश्राम के दिन अपना बैल या गधा थान से खोल कर उसे पानी पिलाने नहीं ले जाता? शैतान ने इस स्‍त्री को, अब्राहम की इस पुत्री को इतने वर्षों से, अठारह वर्षों से बाँध रखा था, तो क्‍या इसे विश्राम के दिन उस बन्‍धन से छुड़ाना उचित नहीं था?” येशु के इन शब्‍दों से उनके सब विरोधी लज्‍जित हो गये; लेकिन सारी जनता उनके समस्‍त महिमामय कार्यों को देख कर आनन्‍दित हुई। येशु ने कहा, “परमेश्‍वर का राज्‍य किसके समान है? मैं इसकी तुलना किस से करूँ? वह उस राई के दाने के समान है, जिसे ले कर किसी मनुष्‍य ने अपने उद्यान में बोया। वह बढ़ते-बढ़ते पेड़ हो गया और आकाश के पक्षी उसकी डालियों में बसेरा करने आए।” येशु ने फिर कहा, “मैं परमेश्‍वर के राज्‍य की तुलना किस से करूँ? वह उस ख़मीर के समान है, जिसे ले कर किसी स्‍त्री ने दस किलो आटे में मिला दिया और होते-होते सारा आटा ख़मीर हो गया।” येशु नगर-नगर, गाँव-गाँव, शिक्षा देते हुए यरूशलेम की ओर आगे बढ़ रहे थे।