इसलिए मैं यह कहता हूं, ‘मेरा सुख समाप्त हो गया; मेरी आशा, जो प्रभु से मैंने की थी, उसका अंत हो गया।’ हे प्रभु, मेरी पीड़ा और मेरे दु:ख को स्मरण कर, देख, मैं कड़ुवाहट से पूर्ण विष और चिरायता पी चुका हूं। मेरी आत्मा सदा इसी बात को सोचती रहती है; मेरा प्राण भीतर ही भीतर दब गया है। परन्तु मैं अपने हृदय में यह स्मरण करता हूं, अत: मेरी यह आशा नहीं टूटती : प्रभु की करुणा निरन्तर बनी रहती है; उसकी दया अनंत है। रोज सबेरे उसमें नए अंकुर फूटते हैं; उसकी सच्चाई अपार है।
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