शोक-गीत 3:17-26

शोक-गीत 3:17-26 HINCLBSI

मेरी आत्‍मा सुख-शांति से वंचित हो गई; मैं भूल गया कि भलाई क्‍या होती है। इसलिए मैं यह कहता हूं, ‘मेरा सुख समाप्‍त हो गया; मेरी आशा, जो प्रभु से मैंने की थी, उसका अंत हो गया।’ हे प्रभु, मेरी पीड़ा और मेरे दु:ख को स्‍मरण कर, देख, मैं कड़ुवाहट से पूर्ण विष और चिरायता पी चुका हूं। मेरी आत्‍मा सदा इसी बात को सोचती रहती है; मेरा प्राण भीतर ही भीतर दब गया है। परन्‍तु मैं अपने हृदय में यह स्‍मरण करता हूं, अत: मेरी यह आशा नहीं टूटती : प्रभु की करुणा निरन्‍तर बनी रहती है; उसकी दया अनंत है। रोज सबेरे उसमें नए अंकुर फूटते हैं; उसकी सच्‍चाई अपार है। मेरा प्राण कहता है, ‘प्रभु ही मेरा अंश है, अत: मैं उसकी आशा करूंगा।’ जो लोग प्रभु की बाट जोहते हैं, जो आत्‍मा उसकी खोज करती है, उसके प्रति प्रभु भला है। यह मनुष्‍य के हित में है, कि वह शांति से प्रभु के उद्धार की प्रतीक्षा करे।