योना 4:6-11

योना 4:6-11 HINCLBSI

प्रभु परमेश्‍वर ने योना के सिर के ऊपर अंडी का एक पेड़ उगाया कि वह योना के सिर पर छाया करे और उसे आराम दे सके। योना इस पेड़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। दूसरे दिन जब प्रात:काल हुआ, तब परमेश्‍वर ने एक कीड़े को भेजा। कीड़े ने अंडी के पेड़ को काटा और अंडी का पेड़ सूख गया। जब सूरज निकला तब परमेश्‍वर ने पूर्व दिशा से गरम हवा बहाई। योना के सिर पर सूरज की किरणें पड़ीं और वह बेहोश हो गया। योना मृत्‍यु की इच्‍छा करने लगा। उसने कहा, ‘मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्‍छा है।’ तब परमेश्‍वर ने योना से पूछा, ‘क्‍या यह उचित है कि तू अंडी के पेड़ के कारण नाराज हो?’ योना ने उत्तर दिया, ‘मेरा क्रोध उचित है। इसलिए मैं नाराज हूं। मैं मर जाना चाहता हूं।’ प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ‘तू उस अंडी के पेड़ के लिए दु:खित है जिसके लिए तूने कोई परिश्रम नहीं किया। तूने उसको न लगाया था और न बड़ा किया था। वह एक रात में उगा और दूसरी रात में नष्‍ट हो गया। सुन, इस महानगर नीनवे में एक लाख बीस हजार से ज्‍यादा अबोध बच्‍चे हैं, जो अपने दाएं-बाएं हाथ का भी अन्‍तर नहीं पहचानते। इसके अतिरिक्‍त निर्दोष पशु भी हैं। तब क्‍या मुझे इस महानगर के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए?’