योना 1:8-17

योना 1:8-17 HINCLBSI

उन्‍होंने योना से पूछा, ‘हमें बताओ, यह विपत्ति हम पर क्‍यों पड़ी है? तुम क्‍या काम-धन्‍धा करते हो? तुम कहां से आ रहे हो? तुम किस देश के रहनेवाले हो? तुम किस जाति के हो?’ तब योना ने उन्‍हें यह बताया, ‘मैं यहूदीहूँ। मैं समुद्र और भूमि के बनानेवाले स्‍वर्गिक प्रभु परमेश्‍वर का आराधक हूँ।’ यह सुनकर नाविक अत्‍यन्‍त डर गए। उन्‍होंने योना से कहा, ‘यह तुमने क्‍या किया!’ योना प्रभु के सम्‍मुख से भाग रहा है, यह बात वे जानते थे; क्‍योंकि स्‍वयं योना ने उन्‍हें बताया था। उन्‍होंने योना से पूछा, ‘समुद्र शांत हो जाए, इसके लिए हमें तुम्‍हारे साथ क्‍या करना चाहिए?’ समुद्र हर क्षण विकराल होता जा रहा था। योना ने उनसे कहा, ‘मुझे उठा कर समुद्र में फेंक दो। तब समुद्र शान्‍त हो जाएगा। मैं जानता हूँ : यह भयंकर तूफान मेरे कारण तुम पर आया है।’ नाविकों ने जलयान को तट पर लाने की पूरी कोशिश की, पर वे उस को तट पर न ले जा सके। समुद्र का रुख उनके विरुद्ध भयंकर होता गया। अन्‍त में नाविकों ने प्रभु से प्रार्थना की, ‘हे प्रभु, हम तुझसे विनती करते हैं। इस मनुष्‍य के प्राण के बदले में हमें मत नष्‍ट कर। निर्दोष व्यक्‍ति की हत्‍या का दोष हम पर मत लगाना। प्रभु, तूने अपनी इच्‍छानुसार यह कार्य किया है।’ तब नाविकों ने योना को उठाया और समुद्र में उसको फेंक दिया। समुद्र का क्रोध तत्‍काल शान्‍त हो गया। यह देखकर नाविक प्रभु से अत्‍यन्‍त डर गए। उन्‍होंने प्रभु को बलि चढ़ाई और मन्नतें मानीं। प्रभु के आदेश से एक बड़ा मच्‍छ योना को निगल गया। योना तीन दिन और तीन रात उस मच्‍छ के पेट में पड़ा रहा।