‘उस दरियाई घोड़े को देख; मैंने उसको भी बनाया है, जैसे मैंने तुझको बनाया है। वह बैल के समान घास खाता है। उसकी कमर में उसकी शक्ति होती है; उसके पेट के पट्ठों में उसकी ताकत होती है। वह अपनी पूँछ को देवदार वृक्ष की तरह कड़ी कर लेता है; उसकी जांघों की नसें एक-दूसरे से मिली हुई हैं। उसकी हड्डियां पीतल की नलियों के समान हैं, उसकी पसलियाँ मानो लोहे की छड़े हैं। ‘वह मुझ-परमेश्वर की उत्कृष्ट रचना है; उसको बनाने वाला ही हाथ में तलवार लेकर उसके समीप जा सकता है। पर्वत उसके भोजन की व्यवस्था करते हैं; वहाँ अन्य वन-पशु भी कलोल करते हैं। वह कमल के पौधों के नीचे लेटता है, वह दलदल और नरकटों की आड़ में पड़ा रहता है। कमल के पौधे उस पर छाया करते हैं; नाले के मजनूं वृक्ष उसको घेरे रहते हैं। नदी में बाढ़ आने पर भी वह नहीं डरता; यर्दन नदी का जल उसके मुँह तक चढ़ आता है; तो भी वह विचलित नहीं होता। जब वह सावधान हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकता है? क्या उसकी नाक छेद कर कोई व्यक्ति उसमें नथ डाल सकता है?
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