अय्‍यूब 37:14-24

अय्‍यूब 37:14-24 HINCLBSI

‘ओ अय्‍यूब, मेरी बात सुनो; चुपचाप खड़े रहो, और परमेश्‍वर के आश्‍चर्यपूर्ण कार्यों पर विचार करो। क्‍या तुम जानते हो कि परमेश्‍वर पृथ्‍वी पर किस प्रकार मेघों से वर्षा कराता है? वह अपने बादलों की बिजली को मानव जाति पर कैसे चमकाता है? क्‍या तुम यह भेद जानते हो कि परमेश्‍वर किस प्रकार बादलों को अधर में सन्‍तुलित रखता है? क्‍या तुम उस सिद्ध ज्ञानी परमेश्‍वर के आश्‍चर्यपूर्ण कार्यों को समझ सकते हो? जब देश में दक्षिणी वायु के कारण सन्नाटा छा जाता है, तब तुम्‍हारे वस्‍त्र क्‍यों गर्म हो जाते हैं? क्‍या तुम परमेश्‍वर के समान, आकाश- मण्‍डल को, जो ढले हुए दर्पण की तरह पक्‍का है, चादर के सदृश तान सकते हो? अय्‍यूब, हमें सिखाओ कि हमें परमेश्‍वर से क्‍या कहना चाहिए, क्‍योंकि अन्‍धकार के कारण हम अपने तर्क अच्‍छे ढंग से पेश नहीं कर सकते हैं। क्‍या हममें से कोई व्यक्‍ति उससे यह कह सकता है कि मैं तुझसे बात करना चाहता हूं? क्‍या किसी मनुष्‍य ने स्‍वयं अपने सर्वनाश की कभी इच्‍छा की है? ‘अब आकाश-मण्‍डल में सूर्य प्रखर रूप से चमक रहा है, वायु ने बहकर उसको स्‍वच्‍छ-साफ कर दिया है। निस्‍सन्‍देह मनुष्‍य आकाश की धूप को नहीं देख सकता। उत्तर दिशा से सुनहरी ज्‍योति आ रही है; परमेश्‍वर भयप्रद तेज से विभूषित है। सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर को कौन पा सकता है? वह अत्‍यन्‍त सामर्थी और न्‍यायप्रिय है। वह पूर्ण धार्मिक है, वह अत्‍याचार नहीं कर सकता। अत: मनुष्‍य उसके प्रति भयभाव रखते हैं; पर जो मनुष्‍य स्‍वयं को अपनी दृष्‍टि में बुद्धिमान मानते हैं, वह उन पर दृष्‍टि भी नहीं करता!’