अय्‍यूब 3:1-26

अय्‍यूब 3:1-26 HINCLBSI

इसके बाद अय्‍यूब ने अपना मुँह खोला और उसने इन शब्‍दों में अपने जन्‍म-दिवस को धिक्‍कारा। उसने कहा : ‘जिस दिन मैं पैदा हुआ वह नष्‍ट हो जाए! जिस रात को यह कहा गया कि शिशु गर्भ में आया, वह रात मिट जाए। वह दिन अंधकारमय हो जाए! स्‍वर्ग से परमेश्‍वर उसकी सुधि न ले, और न प्रकाश उस पर चमके! अंधकार और मृत्‍यु की छाया उस पर अपना अधिकार जमायें; काली घटाएँ उस पर छा जाएँ, दिन की सघन रेतीली हवाएँ उसको डराएँ। उस रात को— जब मैं गर्भ में आया था, तिमिर अंधकार घेर ले; साल के दिनों में उसको आनन्‍द का दिन न माना जाए; महीने के दिनों में उसको गिना न जाए। वह रात बाँझ हो जाए, उसमें सोहर का आनन्‍द-गान न सुनाई दे। श्राप देनेवाले उसको श्राम दें, लिव्‍यातान राक्षस को जगाने में निपुण व्यक्‍ति उस रात को कोसें। भोर के तारे अन्‍धकारमय हो जाएँ। रात को सबेरे के प्रकाश की आशा हो, पर उसकी आशा कभी पूरी न हो; वह प्रात: की किरण-रूपी पलकों को न देख सके। क्‍योंकि उस रात ने मेरी माँ की कोख को बन्‍द नहीं किया, और न ही मेरी आँखों के सामने से दु:ख दर्द हटाया। ‘मैं जन्‍म के समय मर क्‍यों न गया; गर्भ से बाहर आते ही मेरा प्राण क्‍यों न निकल गया? मैं पिता के घुटनों पर क्‍यों रखा गया? मुझे माँ का दूध क्‍यों पिलाया गया? यदि मैं मर गया होता तो अब चुपचाप पड़ा रहता, मैं चिरनिद्रा में सोता और आराम करता— पृथ्‍वी के राजाओं और मन्‍त्रियों के साथ जिन्‍होंने अपनी यादगार में खण्‍डहरों का पुनर्निर्माण किया था, अथवा उन धनवानों के साथ जिनके पास अपार सोना था, जिन्‍होंने अपने महलों को चाँदी से भर लिया था। मैं समय से पूर्व उत्‍पन्न मृत शिशु के समान, गर्भपात के सदृश क्‍यों न हुआ, जो प्रकाश तक नहीं देख पाता? अधोलोक में दुष्‍ट अपनी दुष्‍टता से छूट जाते हैं, वहाँ थके-माँदे लोग विश्राम पाते हैं। वहाँ बन्‍दी भी सुख से रहते हैं, वहाँ उन के निरीक्षकों की कठोर आवाज नहीं होती। अधोलोक में बड़े-छोटे सब बराबर हैं; वहाँ गुलाम अपने मालिक से मुक्‍त रहता है। ‘जो दु:ख में है,उसे जीवन का प्रकाश क्‍यों दिया जाता है? जिसका पैर कबर में लटका है, उसे जीवन क्‍यों मिलता है? वे मृत्‍यु की प्रतीक्षा करते हैं, पर वह नहीं आती; गड़ा धन खोजनेवालों से अधिक वे मृत्‍यु को खोजते हैं। जब वे उसको पा लेते हैं, तब उनके आनन्‍द की कोई सीमा नहीं रहती, वे अपनी मृत्‍यु से हर्षित होते हैं। ‘जो व्यक्‍ति अपना मार्ग नहीं देख पाता है, उसे प्रकाश क्‍यों दिखाया जाता है? जिसके चारों ओर स्‍वयं परमेश्‍वर ने घेराबन्‍दी कर दी है, उसे रास्‍ता क्‍यों बताया जाता है? मेरी आहें ही मेरा भोजन हैं, बहते हुए जल की तरह मेरी कराहें बहती हैं। जिस बात से मैं डरता था, वही मुझ पर आयी; जिससे मैं आतंकित था, वही मुझ पर टूट पड़ा। न मुझे सुख है, और न शान्‍ति; मुझे आराम भी नहीं है; हर क्षण मुझ पर दु:ख के बादल मंडराते हैं।’

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