उसने उत्तर दिया, “वह पापी है या नहीं, इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। मैं केवल एक बात जानता हूँ कि मैं अन्धा था और अब देख रहा हूँ।” इस पर उन्होंने उससे फिर पूछा, “उसने तुम्हारे साथ क्या किया? उसने तुम्हारी आँखें कैसे खोलीं?” उसने उत्तर दिया, “मैं आप लोगों को बता चुका हूँ, लेकिन आपने सुना ही नहीं! अब आप फिर क्यों सुनना चाहते हैं? क्या आप लोग भी उनके शिष्य बनना चाहते हैं?” वे उसे बुरा-भला कहते हुए बोले, “तू उसका शिष्य होगा! हम तो मूसा के शिष्य हैं। हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की है, किन्तु उस मनुष्य के विषय हम नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है।” उसने उन्हें उत्तर दिया, “यही तो आश्चर्य की बात है। उन्होंने मेरी आँखें खोली हैं और आप लोग यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ से आए हैं। हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता। वह उन लोगों की सुनता है, जो उसके भक्त हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्मान्ध की आँखें खोली हों। यदि यह मनुष्य परमेश्वर के यहाँ से नहीं आए होते, तो वह कुछ भी नहीं कर सकते थे।” उन्होंने उससे कहा, “तू तो बिलकुल पाप में जन्मा है और हमें सिखाता है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया। येशु ने सुना कि फरीसियों ने उसे बाहर निकाल दिया है; इसलिए मिलने पर उन्होंने उससे कहा, “क्या तुम मानव-पुत्र में विश्वास करते हो?” उसने उत्तर दिया, “महोदय! मुझे बता दीजिए कि वह कौन है, जिससे मैं उसमें विश्वास कर सकूँ”। येशु ने उससे कहा, “तुम ने उसे देखा है और जो तुम से बातें कर रहा है, वह वही है।” उसने उन्हें दण्डवत् करते हुए कहा, “प्रभु! मैं विश्वास करता हूँ।” येशु ने कहा, “मैं संसार में न्याय के लिए आया हूँ, जिससे जो अन्धे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं, वे अन्धे हो जाएँ।”
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