इसके कुछ समय पश्चात् येशु यहूदियों के किसी पर्व के अवसर पर यरूशलेम गये। यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बेतजैता कहलाता है। उसके पाँच मण्डप हैं। उन में बहुत-से रोगी−अन्धे, लंगड़े और अर्द्धांगरोगी पड़े रहते थे। [वे पानी के लहराने की राह देखते थे, क्योंकि प्रभु का दूत समय-समय पर कुण्ड में उतर कर पानी को हिला देता था। पानी के हिलने के बाद जो व्यक्ति सब से पहले कुण्ड में उतरता था− चाहे वह किसी भी रोग से पीड़ित क्यों न हो, स्वस्थ हो जाता था।] वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्षों से बीमार था। येशु ने उसे पड़ा हुआ देखा और, यह जान कर कि वह बहुत समय से इसी तरह पड़ा हुआ है, उस से पूछा, “क्या तुम स्वस्थ होना चाहते हो?” रोगी ने उत्तर दिया, “महोदय, मेरा कोई नहीं है, जो पानी के हिलने पर मुझे कुण्ड में उतार दे। मेरे पहुँचने से पहले ही उस में कोई और उतर जाता है।” येशु ने उस से कहा, “उठो, अपना बिस्तर उठाओ और चलो।” उसी क्षण वह मनुष्य स्वस्थ हो गया और अपना बिस्तर उठा कर चलने-फिरने लगा। वह विश्राम का दिन था। इसलिए यहूदी धर्मगुरुओं ने स्वस्थ हुए व्यक्ति से कहा, “आज विश्राम का दिन है। बिस्तर उठाना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।” उसने उत्तर दिया, “जिसने मुझे स्वस्थ किया, उसी ने मुझ से कहा, ‘अपना बिस्तर उठाओ और चलो।” उन्होंने उस से पूछा, “कौन है वह, जिसने तुम से कहा, ‘अपना बिस्तर उठाओ और चलो?’ ” स्वस्थ किया हुआ मनुष्य नहीं जानता था कि वह कौन है, क्योंकि उस जगह बहुत भीड़ होने के कारण येशु वहाँ से हट गये थे। कुछ समय पश्चात् येशु को वह मन्दिर में मिला। येशु ने उस से कहा, “देखो, तुम स्वस्थ हो गये हो। फिर पाप मत करना। कहीं ऐसा न हो कि तुम पर और भी भारी संकट आ पड़े।”
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