जब दो दिन बीत गये तब येशु वहाँ से गलील प्रदेश को गये। ( येशु ने स्वयं साक्षी दी थी कि अपने देश में नबी का आदर नहीं होता।) जब वह गलील प्रदेश पहुँचे, तब लोगों ने उनका स्वागत किया; क्योंकि येशु ने पर्व के दिनों में यरूशलेम में जो कुछ किया था, वह सब गलील प्रदेश के उन निवासियों ने देखा था। पर्व के लिए वे भी वहाँ गये थे। येशु फिर गलील प्रदेश के काना नगर में आए, जहाँ उन्होंने जल को दाखरस बनाया था। वहाँ राज्य का एक पदाधिकारी था, जिसका पुत्र कफरनहूम नगर में बीमार था। जब उस पदाधिकारी ने सुना कि येशु यहूदा प्रदेश से गलील प्रदेश में आ गये हैं, तब वह उनके पास आया। उसने उनसे प्रार्थना की कि वह चल कर उसके पुत्र को स्वस्थ कर दें, क्योंकि वह मरने पर था। येशु ने उससे कहा, “आप लोग चिह्न तथा चमत्कार देखे बिना विश्वास नहीं करेंगे।” इस पर पदाधिकारी ने उनसे कहा, “महोदय! कृपया मेरे पुत्र की मृत्यु के पूर्व आइए।” येशु ने उत्तर दिया, “जाइए, आपका पुत्र जीवित है।” वह येशु के वचन पर विश्वास कर चला गया। वह मार्ग में ही था कि उसके सेवक मिले और उस से बोले, “आपका बालक जीवित है।” उसने उन से पूछा कि वह किस समय से अच्छा होने लगा था। उन्होंने कहा, “कल दिन के एक बजे उसका बुखार उतर गया।” तब पिता समझ गया कि ठीक उसी समय येशु ने उससे कहा था, “आपका पुत्र जीवित है,” और उसने अपने सारे परिवार के साथ विश्वास किया।
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