उसी दिन, अर्थात् सप्ताह के प्रथम दिन, सन्ध्या समय, जब शिष्य यहूदी धर्मगुरुओं के भय से द्वार बन्द किये एकत्र थे, येशु उनके बीच आ कर खड़े हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, “तुम्हें शान्ति मिले!” और यह कह कर उन्हें अपने हाथ और अपनी पसली दिखायी। प्रभु को देख कर शिष्य आनन्दित हो उठे। येशु ने उन से फिर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले! जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।” यह कह कर येशु ने उन पर श्वास फूँका, और कहा, “पवित्र आत्मा को ग्रहण करो! तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे क्षमा किए गए और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे क्षमा नहीं होंगे।”
किन्तु जब येशु आए थे, उस समय बारहों में से एक, थोमस, जो दिदिमुस कहलाता था, उनके साथ नहीं था। दूसरे शिष्यों ने उससे कहा, “हम ने प्रभु को देखा है।” उसने उत्तर दिया, “जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निशान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी पसली में अपना हाथ न डाल दूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।”
आठ दिन के पश्चात् येशु के शिष्य फिर घर के भीतर एकत्र थे और थोमस उनके साथ था। यद्यपि द्वार बन्द थे, फिर भी येशु आए और उनके बीच खड़े हो गये और बोले, “तुम्हें शान्ति मिले!” तब उन्होंने थोमस से कहा, “अपनी उँगली यहाँ रखो। देखो, ये मेरे हाथ हैं। अपना हाथ बढ़ा कर मेरी पसली में डालो और अविश्वासी नहीं, बल्कि विश्वासी बनो।” थोमस ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु! हे मेरे परमेश्वर!” येशु ने उससे कहा, “क्या तुम इसलिए विश्वास करते हो कि तुम ने मुझे देखा है? धन्य हैं वे जिन्होंने मुझे नहीं देखा, तो भी विश्वास करते हैं!”
येशु ने अपने शिष्यों के सामने और अनेक आश्चर्यपूर्ण चिह्न दिखाए, जिनका विवरण इस पुस्तक में नहीं दिया गया है। किन्तु इनका विवरण इसलिए दिया गया है, जिससे आप विश्वास करें कि येशु ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हैं और अपने इस विश्वास के द्वारा उनके नाम से जीवन प्राप्त करें।