प्रभु यों कहता है: ‘ओ विश्वासघातिनी जनता, लौट आ! क्योंकि मैं तेरा स्वामी हूं। मैं प्रत्येक नगर से एक व्यक्ति और हरएक गोत्र से दो जन लूंगा, ओर यों तुझको सियोन में पहुंचा दूंगा। ‘सुन, मैं तुझको अपने हृदय के अनुकूल उच्च अधिकारी दूंगा। वे तुझ पर बुद्धि और समझ से शासन करेंगे। उन दिनों में, जब तेरी आबादी इतनी बढ़ जाएगी कि लोग देश में भर जाएंगे, वे “प्रभु की विधान-मंजूषा” के विषय में चर्चा नहीं करेंगे। उसका विचार उनके मस्तिष्क में नहीं आएगा। वे उसका स्मरण नहीं करेंगे। वे उसकी अनुपस्थिति भी अनुभव नहीं करेंगे, और नयी विधान-मंजूषा भी नहीं बनाएंगे। ‘उन दिनों में यरूशलेम नगर “प्रभु का सिंहासन” कहलाएगा। विश्व की सब जातियां यरूशलेम में प्रभु की उपस्थिति में एकत्र होंगी। वे हठ-पूर्वक अपने हृदय के अनुरूप बुरे मार्ग पर नहीं चलेंगी। उन दिनों में यहूदा प्रदेश की जनता इस्राएल प्रदेश की जनता से मिल जाएगी। वे दोनों संगठित होकर उत्तर दिशा से उस भूमि में प्रवेश करेंगी, जो मैंने उनके पूर्वजों को पैतृक-अधिकार के लिए प्रदान की थी।
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