तब मैंने कहा, ‘हाय! अब मैं जीवित नहीं रह सकता! मैं अशुद्ध ओंठवाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध ओंठवाले लोगों के मध्य निवास करता हूं। मैंने साक्षात् स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु, महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा।’ तब एक साराप दूत ने वेदी पर से एक अंगारा चिमटे से उठाया। वह उसको हाथ में लेकर उड़ा और मेरे पास आया। उसने मेरे ओंठों को अंगारे से स्पर्श किया, और यह कहा, ‘देख, इसने तेरे ओंठों को स्पर्श किया, अत: तेरा अधर्म तुझसे दूर हो गया; तेरा पाप क्षमा कर दिया गया।’
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