यशायाह 53:3-11

यशायाह 53:3-11 HINCLBSI

लोगों ने उससे घृणा की; उन्‍होंने उसको त्‍याग दिया। वह दु:खी मनुष्‍य था, केवल पीड़ा से उसकी पहचान थी। उसको देखते ही लोग अपना मुख फेर लेते थे। हम ने उससे घृणा की और उसका मूल्‍य नहीं जाना। निस्‍सन्‍देह उसने हमारी पीड़ा को सहा, और हमारे दु:खों को भोगा। फिर भी हमने समझा कि परमेश्‍वर ने उसे घायल किया है, उसे दु:खी और पीड़ित किया है। किन्‍तु वह हमारे पापों के कारण घायल हुआ; वह हमारे दुष्‍कर्मों के कारण आहत हुआ। उसने अपने शरीर पर ताड़ना-स्‍वरूप मार सही, और उसकी मार से हमारा कल्‍याण हुआ। उसने कोड़े खाए, जिससे हम स्‍वस्‍थ हुए। हम-सब भटकी हुई भेड़ों के सदृश थे; प्रत्‍येक व्यक्‍ति अपने-अपने मार्ग पर चल रहा था। परन्‍तु प्रभु ने हमारे सब दुष्‍कर्मों का बोझ उस पर लाद दिया। वह सताया गया, उसे पीड़ित किया गया, तोभी उसके मुंह से ‘आह’ न निकली। जैसे मेमना वध के लिए ले जाते समय चुप रहता है, जैसे भेड़ ऊन कतरने वाले के सामने शान्‍त रहती है, वैसे ही वह मौन था। अत्‍याचार और दण्‍ड-आज्ञा के पश्‍चात् वे उसे वध के लिए ले गए। उसकी पीढ़ी के किस व्यक्‍ति ने इस बात पर ध्‍यान दिया कि वह जीव-लोक से उठा लिया गया और अपने लोगों के अपराधों के लिए मारा गया? उन्‍होंने दुर्जनों के मध्‍य उसकी कबर बनाई; एक धनवान की कबर में वह गाड़ा गया, यद्यपि उसने कोई हिंसा नहीं की थी, और न अपने मुंह से किसी को धोखा दिया था। यह प्रभु की इच्‍छा थी कि वह मार सहे, प्रभु ने उसे दु:ख से पीड़ित किया। जब वह पाप-बलि के लिए अपना प्राण अर्पित करता है, तब वह अपने वंश को देखेगा; वह दीर्घायु प्राप्‍त करेगा। उसके हाथ से प्रभु की इच्‍छा सफल होगी। जो पीड़ा उसने अपने प्राण में सही है, उसका फल देखकर वह सन्‍तुष्‍ट होगा। प्रभु कहता है : ‘मेरा धार्मिक सेवक अपने ज्ञान के द्वारा अनेक लोगों को धार्मिक बनाएगा; वह उनके दुष्‍कर्मों का फल स्‍वयं भोगेगा।