प्रभु, इस्राएल का राजा, उसका छुड़ानेवाला,
स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है :
‘मैं ही आदि हूं, मैं ही अन्त हूं,
मेरे अतिरिक्त अन्य ईश्वर नहीं है।
मेरे समान कौन है? वह इसकी घोषणा करे।
वह बताए और मेरे सम्मुख
अपने पक्ष को प्रस्तुत करे।
प्राचीनकाल से कौन भविष्य की घटनाएँ
पहले से ही बताता आया है?
वे हमें बताएँ कि भविष्य में
क्या होनेवला है?
मत डरो, भयभीत मत हो।
मैं प्राचीनकाल से
ये बातें तुम्हें बताता आ रहा हूं,
तुम पर प्रकट करता आ रहा हूं।
तुम मेरे गवाह हो।
क्या मुझे छोड़ और कोई ईश्वर है?
नहीं, मुझे छोड़ तुम्हारी कोई “चट्टान” नहीं है।
मैं किसी अन्य को नहीं जानता।’
मूर्ति गढ़नेवालों का अस्तित्व निस्सार है,
उनकी प्रिय मूर्तियों से कोई लाभ नहीं!
मूर्तियों के समर्थक जो उनको अपना ईश्वर
मानते हैं,
न देखते हैं और न जानते हैं।
वे लज्जित होंगे।
कौन देवता की मूर्ति बनाता,
अथवा उसको गढ़ता है,
जब कि उससे किसी को लाभ नहीं होता?
मूर्तिकार के सहयोगी भी लज्जित होंगे,
कारीगर तो मनुष्य ही हैं।
सब कारीगर एकत्र हों।
वे मेरे सम्मुख खड़े हों।
मैं उनको आतंकित करूंगा,
वे सबके सब लज्जित होंगे।
लोहार मूर्ति को बनाता है। वह उसको अंगारों पर रखता है। वह हथौड़ों से उसको पीटता है। वह अपने मजबूत हाथों से उसको आकार देता है। यह सब कार्य करते-करते उसे भूख लगती है। वह निर्बल हो जाता है। जब वह पानी नहीं पीता तब मूर्छित हो जाता है।
बढ़ई डोरी से नापता है। वह पेन्सिल से उस पर निशान लगाता है। वह रन्दे से उसको आकार देता है। वह परकार से रेखा खींचता है। तत्पश्चात् वह उसको मनुष्य की आकृति में बदलता है। सुन्दर मनुष्य के सदृश वह उसको बनाता है कि आराधक उसे गृहदेवता के रूप में घर में प्रतिष्ठित कर सकें।
मनुष्य देवदार के वृक्ष को काटता है। अथवा पहले वह तिर्जा या बांज वृक्ष को चुनता है। तत्पश्चात् वह उसको जंगल के अन्य वृक्षों के मध्य बढ़ने और मजबूत होने देता है। वह देवदार का पौधा भी लगाता है, और वर्षा उसको बढ़ाती है। फिर वह मनुष्य के लिए इंधन की लकड़ी बन जाता है। मनुष्य उसकी कुछ लकड़ी जलाकर आग तापता है। वह उसको चूल्हे में जलाकर उस पर रोटी सेंकता है। वह उससे देवता बनाता है, और झुककर उसकी वंदना करता है। वह उस पर मूर्ति खोदता और भूमि पर लेटकर उसको प्रणाम करता है। यों देवदार की आधी लकड़ी वह आग में जलाता है, और उससे वह मांस पकाता, मांस को भूंजता, उसको खाता और सन्तुष्ट होता है। वह लकड़ी जलाकर आग तापता, और यह कहता है, ‘अहा! शरीर में गर्मी आ गई। मैंने आग ताप ली।’
बची हुई लकड़ी से वह अपने देवता की मूर्ति बनाता है। वह उसके सम्मुख भूमि पर गिरकर उसकी वंदना करता है। वह मूर्ति से प्रार्थना करता है, और उससे यह कहता है, ‘तू ही मेरा ईश्वर है, मुझे बचा।’
ऐसे लोग न जानते हैं और न समझते हैं। उनकी आंखें बन्द हैं, अत: वे देख नहीं सकते। उनकी बुद्धि पर परदा पड़ा है, इसलिए वे समझ नहीं सकते। वे विचार नहीं करते; न उनमें ज्ञान है और न समझ। वे यह नहीं सोचते कि उन्होंने देवदार की लकड़ी का आधा भाग आग में जलाया। उसके अंगारों पर रोटी सेंकी, मांस भूंजकर खाया। तब क्या बची हुई लकड़ी से मूर्ति बनाना चाहिए जो प्रभु परमेश्वर की दृष्टि में घृणित कार्य है? क्या उन्हें एक लकड़ी के खंभे के सम्मुख भूमि पर लेटकर वंदना करना चाहिए? ऐसे मनुष्य राख खानेवाले हैं। भ्रमपूर्ण मन ने उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया है। वे अपने को बचा नहीं सकते और न यह कह सकते हैं, ‘हम मिथ्याचार में फंसे हुए हैं।’
ओ याकूब, ओ इस्राएल!
ये बातें स्मरण रख, क्योंकि तू मेरा सेवक है।
मैंने तुझे गढ़ा है, तू मेरा सेवक है।
ओ इस्राएल, मैं तुझे कभी नहीं भूलूंगा।
मैंने बादलों की तरह
तेरे अपराध लोप कर दिए;
कुहरे के समान तेरे पाप उड़ा दिए।
मेरे पास लौट आ, मैंने तुझे छुड़ा लिया है।
ओ आकाश, गीत गा,
क्योंकि प्रभु ने कार्य सम्पन्न किया है।
ओ पृथ्वी के अधोलोक, जयजयकार कर।
ओ पर्वतो, जंगलो, और वन-वृक्षों,
उच्चस्वर में गाओ।
प्रभु ने याकूब को मुक्त किया है,
इस्राएल में प्रभु की महिमा की जाएगी।