‘ओ भोर के चमकते तारे, ओ उषा-पुत्र, आकाश से तू कैसे नीचे गिर गया! अरे, तूने तो राष्ट्रों को धूल-धूसरित किया था। अब तू कैसे स्वयं भूमि की धूल चाट रहा है! तूने अपने हृदय में सोचा था, “मैं आकाश पर चढ़ूंगा, परमेश्वर के तारों के ऊपर, ऊंचे से ऊंचे स्थान पर मैं अपना सिंहासन प्रतिष्ठित करूंगा। मैं दूरस्थ उत्तर में स्थित ‘देवताओं के पर्वत’ पर विराजूंगा। मैं बादलों के ऊपर उच्चतम स्थान पर चढ़ूंगा, मैं स्वयं को सर्वोच्च परमेश्वर के तुल्य बनाऊंगा।”
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