इब्रानियों 3:7-19

इब्रानियों 3:7-19 HINCLBSI

इसलिए आप पवित्र आत्‍मा के इस कथन पर ध्‍यान दें : “यदि तुम ‘आज’ परमेश्‍वर की वाणी सुनो, तो अपना हृदय कठोर न करना, जैसा कि पहले, विद्रोह के समय, हुआ था। उस दिन तुम्‍हारे पूर्वजों ने निर्जन प्रदेश में मेरी परीक्षा ली। उन्‍होंने वहां मुझे चुनौती दी, यद्यपि उन्‍होंने चालीस वर्षों तक मेरे कार्य देखे थे। इसलिए मैं उस पीढ़ी पर अप्रसन्न हो गया और मैंने कहा, “इनका हृदय सदा भटकता रहता है; और ये मेरे मार्ग नहीं जानते हैं।” अत: मैंने क्रुद्ध हो कर यह शपथ खायी: “ये मेरे विश्रामस्‍थान में प्रवेश नहीं करेंगे।” ” भाइयो और बहिनो! आप सावधान रहें। आप लोगों में से किसी के मन में इतनी बुराई और अविश्‍वास न हो कि वह जीवन्‍त परमेश्‍वर से विमुख हो जाये। जब तक “आज” बना रहता है, आप लोग प्रतिदिन एक दूसरे को प्रोत्‍साहन देते जायें, जिससे कोई भी पाप के फन्‍दे में पड़ कर कठोर न बने। हम तो मसीह के भागीदार बन गये हैं, बशर्ते हम अपना आधारभूत विश्‍वास अन्‍त तक अक्षुण्‍ण बनाये रखें। धर्मग्रन्‍थ कहता है, “यदि तुम आज उसकी वाणी सुनो तो अपना हृदय कठोर न करना, जैसा कि पहले, विद्रोह के समय हुआ था।” जिन लोगों ने वाणी सुन कर विद्रोह किया, वे कौन थे? निश्‍चय ही वे सब लोग, जो मूसा के नेतृत्‍व में मिस्र देश से निकल आये थे। परमेश्‍वर चालीस वर्षों तक किन लोगों पर अप्रसन्न रहा? निश्‍चय ही उन लोगों पर, जिन्‍होंने पाप किया था और जिनके शव निर्जन प्रदेश में पड़े रहे। किन लोगों के विषय में उसने शपथ खाकर कहा कि “ये मेरे विश्रामस्‍थान में प्रवेश नहीं करेंगे”? निश्‍चय ही उनके विषय में, जिन्‍होंने विश्‍वास करना अस्‍वीकार किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि वे अपने अविश्‍वास के कारण प्रवेश नहीं कर पाये।