इसलिए मैं प्रभु, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु, यह कहता हूँ: अपने आचरण पर ध्यान दो। तुमने बहुत बोया, पर काटा थोड़ा। तुम खाते हो, पर तृप्त नहीं होते। पानी पीते हो, पर प्यास नहीं बुझती। तुम कपड़े पहिनते हो, पर उससे तुम्हारी ठण्ड दूर नहीं होती। मजदूर कमाता है, पर अपनी कमाई को ऐसी थैली में रखता है, जिसमें छेद है।’ स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है : ‘अपने आचरण पर ध्यान दो। पहाड़ पर जाओ; वहां से इमारती लकड़ी लाओ और मेरे भवन को बनाओ। तब मैं भवन को देखकर प्रसन्न होऊंगा, और अपनी महिमा प्रकट करूंगा। मैं-प्रभु तुमसे यह कह रहा हूं
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