जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुंचा, उन्होंने उसके वस्त्र, उसका बाहों वाला अंगरखा जिसे वह पहिने हुए था, उतार लिये। तत्पश्चात् उन्होंने उसे पकड़कर गड्ढे में फेंक दिया। गड्ढा सूखा था। उसमें पानी न था। वे रोटी खाने बैठे। जब उन्होंने अपनी आँखें ऊपर उठाईं तब उन्हें यिश्माएलियों का एक कारवां दिखाई दिया, जो गिलआद की ओर से आ रहा था। वे अपने ऊंटों पर गोंद, बलसान और गन्धरस लादे हुए मिस्र देश जा रहे थे। यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, ‘यदि हम अपने भाई की हत्या करें, और उसका रक्त छिपाएं, तो हमें क्या लाभ होगा? आओ, हम उसे यिश्माएलियों के हाथ बेच दें, और अपना हाथ उस पर न उठाएं; क्योंकि वह हमारा भाई है, हमारी ही देह है।’ उसके भाइयों ने उसकी बात सुनी। उस समय मिद्यानी व्यापारी वहाँ से निकले। भाइयों ने गड्ढे से यूसुफ को खींचकर बाहर निकाला और उसे चांदी के बीस सिक्कों में यिश्माएलियों के हाथ बेच दिया। वे यूसुफ को मिस्र देश ले गए।
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