एसाव बोला, ‘आओ, हम अपने मार्ग पर बढ़ चलें। मैं तुम्हारे आगे जाऊंगा।’ परन्तु याकूब उससे बोला, ‘मेरे स्वामी, तुम तो जानते हो कि बच्चे सुकुमार हैं। मेरे साथ दूध देनेवाली भेड़-बकरियाँ और गाएं हैं, जिनकी देखभाल मुझे करनी पड़ती है। यदि इन्हें एक दिन भी अधिक हांका जाए तो ये सब मर जाएँगे। मेरा स्वामी अपने सेवक के आगे बढ़ जाए। जो पशु मेरे आगे-आगे हैं, उनकी गति एवं अपने बच्चों की गति के अनुसार मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ूंगा, जब तक सेईर नगर में अपने स्वामी के पास न पहुंच जाऊं।’ एसाव बोला, ‘क्या मैं अपने साथ के कुछ मनुष्य तुम्हारे पास छोड़ जाऊं?’ किन्तु याकूब ने कहा, ‘इसकी क्या आवश्यकता है? मेरे स्वामी की कृपा-दृष्टि मुझपर बनी रहे।’ अत: एसाव उसी दिन सेईर नगर को चला गया। परन्तु याकूब सुक्कोत नगर की ओर गया। वहाँ उसने अपने लिए घर और पशुओं के लिए पशु-शालाएं बनाईं। इस कारण उस स्थान का नाम ‘सुक्कोत’ पड़ा। याकूब पद्दन-अराम क्षेत्र से निकलकर कनान देश के शकेम नगर में सकुशल पहुँचा। उसने नगर के सम्मुख पड़ाव डाला। जिस भूमि पर उसने तम्बू गाड़े, उसको उसने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों से एक सौ मुद्रा में खरीद लिया। वहाँ उसने एक स्तम्भ खड़ा किया और उसका नाम ‘एल-एलोहे-इस्राएल’ रखा।
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