उत्‍पत्ति 27:34-40

उत्‍पत्ति 27:34-40 HINCLBSI

जब एसाव ने अपने पिता इसहाक की ये बातें सुनीं, तब उसने अत्‍यन्‍त ऊंची और दु:खपूर्ण आवाज में अपने पिता से कहा, ‘पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दीजिए।’ वह बोले, ‘तेरा भाई धूर्तता से आया और तेरा आशीर्वाद लेकर चला गया।’ एसाव ने कहा, ‘उसका नाम याकूब ठीक ही रखा गया था। उसने दो बार मुझे अड़ंगा मारा : पहले तो मेरा ज्‍येष्‍ठ पुत्र होने का अधिकार ले लिया, और अब मेरा आशीर्वाद भी छीन लिया।’ एसाव ने पूछा, ‘क्‍या आपने मेरे लिए कोई आशीर्वाद बचाकर नहीं रखा?’ इसहाक ने एसाव को उत्तर दिया, ‘मैंने उसे तेरा स्‍वामी बनाया है। मैंने उसके सब भाइयों को उसके सेवक बनने के लिए प्रदान कर दिया। मैंने अनाज और अंगूर से उसको सम्‍पन्न बना दिया। अब मेरे पुत्र, मैं तेरे लिए क्‍या कर सकता हूँ?’ एसाव अपने पिता से बोला, ‘क्‍या आपके पास केवल एक ही आशीर्वाद था? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दीजिए।’ एसाव फूट-फूट कर रोने लगा। तब उसके पिता इसहाक ने उसे उत्तर दिया, ‘उपजाऊ भूमि से दूर, ऊंचे आकाश की ओस से दूर, तेरा निवास स्‍थान होगा। तू तलवार के बल पर जीवित रहेगा। तू अपने भाई की सेवा करेगा। पर जब तू अशान्‍त हो जाएगा तब अपनी गरदन से उसके गुलामी के जूए को तोड़ फेंकेगा।’