उत्‍पत्ति 2:5-15

उत्‍पत्ति 2:5-15 HINCLBSI

पर उस समय धरती पर भूमि का कोई पौधा उगा नहीं था, और न ही भूमि की कोई वनस्‍पति अंकुरित हुई थी; क्‍योंकि प्रभु परमेश्‍वर ने पृथ्‍वी पर वर्षा न की थी, और भूमि की जोताई करने के लिए मनुष्‍य न था। कुहराधरती से ऊपर उठा, और उसने समस्‍त भूमि सींच दी। तब प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को भूमि की मिट्टी से गढ़ा तथा उसके नथुनों में जीवन का श्‍वास फूँका और मनुष्‍य एक जीवित प्राणी बन गया। प्रभु परमेश्‍वर ने पूर्व दिशा में अदन में एक उद्यान लगाया, और वहाँ उस मनुष्‍य को, जिसे उसने गढ़ा था, रख दिया। प्रभु परमेश्‍वर ने समस्‍त वृक्षों को, जो देखने में सुन्‍दर थे, और आहार के लिए उत्तम हैं, भूमि से उगाया। उसने उद्यान के मध्‍य में जीवन का वृक्ष तथा भले-बुरे के ज्ञान का वृक्ष उगाया। एक महा नदी उद्यान को सींचने के लिए अदन से निकली और वहाँ विभाजित होकर चार नदियों में परिवर्तित हो गई। पहली नदी का नाम पीशोन है। यह वही नदी है जो हवीला देश के चारों ओर बहती है, जहाँ सोना पाया जाता है। उस देश का सोना उत्तम होता है। वहाँ मोती और सुलेमानी पत्‍थर भी पाए जाते हैं। दूसरी नदी का नाम गीहोन है। यह वही नदी है जो कूश देश के चारों ओर बहती है। तीसरी नदी का नाम दजला है, जो असीरिया देश की पूर्व दिशा में बहती है। चौथी नदी का नाम फरात है। प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को लेकर अदन के उद्यान में नियुक्‍त किया कि वह उसमें खेती करे और उसकी रखवाली करे।

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