यहेजकेल 47:1-12

यहेजकेल 47:1-12 HINCLBSI

फिर वह मुझे मन्‍दिर के द्वार पर वापस ले गया। वहाँ मैंने यह देखा: मन्‍दिर की ड्‍योढ़ी के नीचे से पानी निकल रहा है, और पूर्व की ओर बह रहा है (क्‍योंकि मन्‍दिर का मुंह पूर्व दिशा में था)। पानी मन्‍दिर की दाहिनी ओर नीचे से और वेदी के दक्षिणी ओर से निकल रहा था। तब वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर ले गया। वह मुझे बाहर ही बाहर घुमाता हुआ पूर्वमुखी फाटक पर ले आया। मैंने वहाँ देखा कि पानी दक्षिणी अलंग से पसीज-पसीज कर निकल रहा है। उस पुरुष ने हाथ में नापने की डोरी ली, और वह पूर्व की ओर गया। तब उसने मन्‍दिर से लेकर पांच सौ मीटर तक सरिता को नापा। तत्‍पश्‍चात् उसने मुझे पानी में चलाया। पानी टखनों तक गहरा था। उसने फिर पांच सौ मीटर नापा, और मुझे पानी में चलाया। पानी घुटनों तक गहरा था। उसने फिर पांच सौ मीटर नापा, और मुझे पानी में चलाया। पानी कमर तक गहरा था। उसने फिर पांच सौ मीटर नापा, और मुझे पानी में चलाया। किन्‍तु मैं उसमें चल न सका; क्‍योंकि वह एक नदी थी, और उसका पानी बढ़ गया था। वह इतना गहरा था कि उसको केवल तैर कर पार किया जा सकता था। नदी इतनी गहरी थी कि उसको कोई पैदल चलकर पार नहीं कर सकता था। तब उसने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, क्‍या तूने यह ध्‍यान से देखा?’ वह मुझे नदी के किनारे-किनारे चलाता हुआ लौटा लाया। जब मैं लौट रहा था, तब मैंने देखा कि नदी के दोनों किनारों पर बहुत पेड़ हैं। उसने मुझे बताया, ‘यह नदी पूर्वी क्षेत्र की ओर बहती हुई अराबा में उतरती है। जब यह लवण-सागर के स्‍थिर जल में मिलती है, तब वह भी स्‍वच्‍छ और मीठा हो जाता है। जहां-जहां से यह नदी गुजरती है, वहां झुण्‍ड के झुण्‍ड प्राणियों को जीवन मिलता है। वहां असंख्‍य मछलियां होती हैं; क्‍योंकि जब यह नदी वहां पहुंचती है तब लवण-सागर का खारा जल भी स्‍वच्‍छ और मीठा हो जाता है। इस प्रकार जहां-कहीं से यह नदी गुजरेगी, वहां के प्राणियों को जीवन मिलेगा। सागर के तट पर मछली पकड़ने के लिए मछुए खड़े होंगे। वे एनगदी जलस्रोत से लेकर एनेग्‍लैम जलस्रोत तक जाल फैलाएंगे, और उन्‍हें भूमध्‍य-सागर की मछलियों के समान अनेक जाति की मछलियाँ मिलेंगी। किन्‍तु लवण-सागर के पास के गड्ढों और दलदल का जल मीठा न होगा। उनका पानी खारा ही रहेगा, जिससे नमक उपलब्‍ध हो सके। नदी के दोनों किनारों पर अनेक प्रकार के पेड़ होंगे, जो आहार के लिए फल देंगे। उनके पत्ते कभी नहीं मुरझाएंगे, और न ही उनमें फल लगना बन्‍द होगा। किन्‍तु ये पेड़ हर महीने नए फल दिया करेंगे, क्‍योंकि उनको सींचनेवाला जल पवित्र-स्‍थान से निकला है! उनके फल आहार के, और पत्ते औषधि के काम आएंगे।’

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