मुझे प्रभु का सन्देश पुन: प्राप्त हुआ। प्रभु ने मुझसे कहा, ‘ओ मानव, तुम लोग अपने देश इस्राएल में यह कहावत क्यों कहते हो कि, “खट्टे अंगूर खाए बाप-दादों ने, लेकिन दांत खट्टे हुए उनके बच्चों के” । मैं, स्वामी-प्रभु यह कहता हूँ : मेरे जीवन की सौगन्ध! अब से इस्राएल देश में तुम यह कहावत नहीं कहोगे। देखो, सब प्राणी मेरे ही हैं। पिता का प्राण और पुत्र का प्राण, दोनों पर मेरा ही अधिकार है। इसलिए जो प्राणी पाप करता है, केवल वही मरेगा। यदि कोई मनुष्य धार्मिक है, और वह न्याय और धर्म के अनुसार यह आचरण करता है : वह पहाड़ी शिखर की वेदी के सम्मुख बलि-पशु का मांस नहीं खाता। वह इस्राएल के कुल द्वारा अपनायी गयी देव-मूर्तियों की ओर सहायता के लिए आंखें नहीं उठाता। वह अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ व्यभिचार नहीं करता। वह ऋतुमति स्त्री के साथ सम्भोग नहीं करता। वह किसी का शोषण नहीं करता, वरन् कर्जदार को उसके कर्ज से मुक्त करता है, और उसकी गिरवी में रखी वस्तु को लौटा देता है। वह चोरी नहीं करता। वह भूखे व्यक्ति को अपना भोजन देता है। वह नंगे व्यक्ति को अपना कपड़ा पहनाता है। वह अपना धन ब्याज पर नहीं देता और न ही सूद खाता है। वह किसी कुकर्म में हाथ नहीं डालता। वह वादी और प्रतिवादी के बीच सच्चाई से न्याय करता है। वह मेरी संविधियों पर चलता है, और मेरे आदेशों का पालन निष्ठापूर्वक करता है। ऐसा व्यक्ति निस्सन्देह धार्मिक है, और वह जीवित रहेगा।’ स्वमी-प्रभु की यही वाणी है।
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