सम्राट क्षयर्ष और हामान रानी एस्तर के भोज में सम्मिलित हुए। यह दूसरा दिन था। जब वे शराब पी रहे थे तब सम्राट ने एस्तर से पुन: पूछा, ‘महारानी एस्तर, आप क्या मांगती हैं? आपकी मांग पूरी की जाएगी। यदि आप मेरा आधा राज्य भी मांगेंगी तो वह आपको दिया जाएगा।’ तब रानी एस्तर ने उत्तर दिया, ‘महाराज, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, और यदि आप उचित समझें तो मेरी यह विनती है कि मुझे जीवन-दान मिले। मेरे निवेदन पर मेरी कौम को भी जीवन-दान दिया जाए। हमारा विनाश करने के लिए, हमारा वध करने के लिए, हमारा नामोनिशान मिटा डालने के लिए मुझे और मेरी कौम को बेच दिया गया है। अगर हमें केवल गुलाम के रूप में बेचा जाता तो मैं चुप रहती। उस स्थिति में हमारी बिक्री से महाराज को हानि के स्थान पर लाभ ही होता।’ सम्राट क्षयर्ष ने रानी एस्तर से पूछा, ‘कौन है वह? वह कहां है, जिसने ऐसा कार्य करने का दुस्साहस किया है।’ ‘वह बैरी, वह दुश्मन, यह दुष्ट हामान है!’, एस्तर ने कहा। हामान सम्राट और रानी के सामने आतंकित हो गया। सम्राट क्रोधावेश में भोजन पर से उठ गया, और वह राजमहल के उद्यान में चला गया। किन्तु हामान वहीं ठहरा रहा और रानी एस्तर से अपने प्राणों की भीख मांगने लगा, क्योंकि उसने जान लिया था कि सम्राट ने उसका अनिष्ट करने का निश्चय कर लिया है। सम्राट राजमहल के उद्यान से उस स्थान पर लौटा जहां वे शराब पी रहे थे। उसने देखा कि जिस दीवान पर एस्तर लेटी है, उस पर हामान झुका हुआ है। सम्राट ने कहा, ‘क्या यह मेरे ही सामने, मेरे ही महल में महारानी पर बलात्कार करना चाहता है?’ सम्राट के मुंह से ये शब्द निकलते ही खोजों ने हामान का चेहरा ढक दिया। सम्राट की सेवा करनेवाले खोजों में से एक खोजा − हर्बोना ने सम्राट से कहा, ‘महाराज के प्राण बचाने वाले मोरदकय के लिए बीस मीटर ऊंचा फांसी-स्तम्भ हामान ने बनवाया है। वह उसके निवास-स्थान में खड़ा है।’ सम्राट ने आदेश दिया, ‘इसको उस सलीब पर लटका दो।’ अत: जो सलीब हामान ने मोरदकय के लिए बनवाई थी, उसी पर उसको लटका दिया गया। तब सम्राट का क्रोध शान्त हुआ।
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