तीसरे दिन एस्तर ने अपने राजसी वस्त्र पहिने और सम्राट क्षयर्ष के भवन के सम्मुख महल के अन्त:पुर में उपस्थित हुई। सम्राट महल में प्रवेश-द्वार के सामने अपने सिंहासन पर बैठा था। जब उसने रानी को अन्त:पुर में खड़े हुए देखा तब वह उससे प्रसन्न हो गया। उसने अपने हाथ का स्वर्ण राजदण्ड उसकी ओर बढ़ाया। एस्तर आगे बढ़ी और उसने राजदण्ड के सिरे का स्पर्श किया। सम्राट ने पूछा, ‘महारानी एस्तर, क्या बात है? आपको क्या चाहिए? आपकी हर इच्छा पूरी की जाएगी। यदि आप मेरा आधा राज्य भी मांगेगी, तो मैं वह आपको दूंगा।’ एस्तर ने कहा, ‘महाराज, मैंने आज भोजन तैयार किया है। यदि महाराज को यह उचित प्रतीत हो, तो आप हामान को लेकर भोजन के लिए आएं।’ सम्राट ने आदेश दिया, ‘हामान को तुरन्त पेश किया जाए कि हम महारानी एस्तर की इच्छा पूरी करें।’ अत: सम्राट क्षयर्ष और हामान एस्तर द्वारा तैयार किए गए भोज में सम्मिलित हुए। जब वे शराब पी रहे थे तब सम्राट क्षयर्ष ने एस्तर से पूछा, ‘महारानी, आप क्या मांगती हैं? आपकी मांग पूरी की जाएगी। यदि आप मेरा आधा राज्य भी मांगेंगी तो वह आपको दे दिया जाएगा।’ एस्तर ने कहा, ‘महाराज, मेरी इच्छा और मांग केवल यह है: यदि महाराज की मुझ पर कृपादृष्टि हुई है, यदि महाराज उचित समझते हैं कि मेरे निवेदन और मांग को पूरा किया जाए तो महाराज और हामान कल फिर भोजन के लिए आएं, जो मैं आप दोनों के लिए तैयार करूंगी। कल मैं अपनी इच्छा प्रकट करूंगी, जैसा महाराज ने आदेश दिया है।’
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