कुछ दिनों के पश्चात् सम्राट क्षयर्ष ने अगाग वंश के हामान बेन-हम्मदाता की पदोन्नति की; उसे उच्च पद दिया, और उसके सहयोगी सामंतों में उसे उच्चासन प्रदान किया। अत: राजभवन के द्वारपाल, सम्राट के सब सेवक, हामान के सम्मुख सिर झुकाकर और भूमि पर लेटकर उसको साष्टांग प्रणाम करते थे; क्योंकि सम्राट ने उन्हें ऐसा ही आदेश दिया था। किन्तु मोरदकय न तो सिर झुकाकर और न भूमि पर लेटकर उसको साष्टांग प्रणाम करता था। सम्राट क्षयर्ष के सेवकों ने, जो राजमहल के द्वारपाल थे, मोरदकय से कहा, ‘तुम महाराज के आदेश का उल्लंघन क्यों करते हो?’ द्वारपाल हर दिन उससे यह कहते थे, किन्तु उसने उनकी बात नहीं सुनी। मोरदकय ने उन्हें बताया कि वह यहूदी है, और वह किसी को सिर झुकाकर प्रणाम नहीं कर सकता। यह देखने के लिए कि क्या मोरदकय की यह बात हामान को स्वीकार होगी अथवा नहीं, द्वारपालों ने उसको बता दिया कि मोरदकय यहूदी है। जब हामान ने यह देखा कि मोरदकय न सिर झुकाकर और न भूमि पर लेटकर उसको प्रणाम करता है, तब वह क्रोध से भर गया। पर उसने केवल मोरदकय पर ही हाथ उठाना उचित न समझा। द्वारपालों ने मोरदकय के अन्य जाति-भाई-बन्धुओं के विषय में भी उसे बताया था, इसलिए वह सम्राट क्षयर्ष के समस्त साम्राज्य में बसे हुए मोरदकय के जाति-भाई-बन्धुओं को−सब यहूदियों को नष्ट करना चाहता था। सम्राट क्षयर्ष के शासन-काल के बारहवें वर्ष के प्रथम महीने में, अर्थात् नीसान महीने में, हामान ने अपने सम्मुख ‘पूर’ − जिसका अर्थ है ‘चिट्ठी’ − प्रत्येक दिन तथा प्रत्येक महीने के नाम पर निकलवायी। शकुन विचार करने वालों ने चिट्ठी डाली तो वह बारहवें महीने−अदार के नाम पर और उसके तेरहवें दिन पर निकली।
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