एस्तर को सम्राट क्षयर्ष के शासन-काल के सातवें वर्ष के दसवें महीने, अर्थात् तेबेट माह में, सम्राट के पास महल में लाया गया। सम्राट ने अन्य स्त्रियों से अधिक एस्तर को प्यार किया; और एस्तर ने सब कन्याओं से अधिक सम्राट की कृपा-दृष्टि प्राप्त की। सम्राट उससे यहाँ तक प्रसन्न हो गया कि उसने उसके सिर पर राजमुकुट पहिना दिया, और उसको वशती के स्थान पर रानी बना दिया। तत्पश्चात् सम्राट ने अपने सब सामंतों और दरबारियों को महा-भोज दिया। यह एस्तर के सम्मान में दिया गया। सम्राट क्षयर्ष ने अपने अधीन प्रदेशों का कर भी माफ कर दिया, और शाही उदारता के अनुरूप उपहार लुटाए। जब कन्याएं दूसरी बार एकत्र हुईं, उस समय मोरदकय राजमहल के प्रवेश-द्वार पर बैठा हुआ था। उसके आदेश के अनुसार एस्तर ने अपनी जाति और वंश को प्रकट नहीं किया था। एस्तर अपने चचेरे भाई की आज्ञा का पालन करती थी; क्योंकि उसने ही उसका पालन-पोषण किया था। जिन दिनों मोरदकय राजमहल के प्रवेश-द्वार पर बैठा करता था, सम्राट के दो खोजे−बिगताना और तेरेश−जो द्वारपाल थे, सम्राट क्षयर्ष से नाराज हो गए, और उन्होंने सम्राट पर प्रहार करने का षड्यन्त्र रचा। मोरदकय को यह मालूम हो गया, और उसने षड्यन्त्र की सूचना रानी एस्तर को दे दी। रानी एस्तर ने मोरदकय के नाम से सम्राट को यह बता दिया। सम्राट ने तत्काल षड्यन्त्र की खोजबीन की, और सूचना सच निकली। दोनों खोजे फांसी के खम्भों पर टांग दिये गए। इस षड्यन्त्र का विवरण ‘इतिहास ग्रन्थ’ में सम्राट के सम्मुख लिख लिया गया।
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