एक बात और : यह भी व्यर्थ है, और पृथ्वी पर होती है। धार्मिक व्यक्तियों को दुर्जन मनुष्यों के दुष्कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, और दुर्जन मनुष्य धार्मिक व्यक्तियों के सत्कर्मों का फल प्राप्त करते हैं। अत: मैं कहता हूं, यह भी व्यर्थ है। इसलिए मैं लोगों को सलाह देता हूं: आनन्द मनाओ। सूर्य के नीचे धरती पर मनुष्य के लिए खाने-पीने और आनन्द मनाने के अतिरिक्त और कुछ भी अच्छा नहीं है। जो आयु परमेश्वर ने उसे इस धरती पर प्रदान की है, उसके परिश्रम में यही आनन्द विद्यमान रहेगा। जब मैंने बुद्धि प्राप्त करने के लिए, तथा पृथ्वी पर होने वाले कार्य-व्यापार को समझने के लिए मन लगाया, और जब मैंने यह जानने का प्रयत्न किया कि कैसे मनुष्य रात-दिन जागते रहते हैं, तब मुझे अनुभव हुआ कि परमेश्वर का समस्त कार्य, जो सूर्य के नीचे इस धरती पर होता है, चाहे मनुष्य उसका भेद जानने के लिए कितना ही परिश्रम क्यों न करे, वह उसका पता नहीं लगा सकता। यदि कोई बुद्धिमान मनुष्य उसको जानने का दावा करे तो भी वह उसका पता नहीं लगा सकता।
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