सभा-उपदेशक 6:1-3

सभा-उपदेशक 6:1-3 HINCLBSI

मैंने सूर्य के नीचे धरती पर एक और बुराई देखी, जिसके भार से मनुष्‍य दबा रहता है। वह बुराई यह है: परमेश्‍वर मनुष्‍य को धन-सम्‍पत्ति और प्रतिष्‍ठा प्रदान करता है, और मनुष्‍य को अपनी इच्‍छा के अनुसार सब कुछ प्राप्‍त हो जाता है। उसे किसी वस्‍तु का अभाव नहीं रहता। परन्‍तु उस मनुष्‍य को परमेश्‍वर धन-सम्‍पत्ति भोगने का सामर्थ्य नहीं देता; बल्‍कि अनजान व्यक्‍ति उसकी धन-सम्‍पत्ति भोगता है। अत: धन-सम्‍पत्ति निस्‍सार है, यह भयानक दु:ख की बात है। यदि किसी मनुष्‍य के सौ पुत्र उत्‍पन्न होते हैं, और वह लम्‍बी उम्र तक जीवित रहता है, दीर्घ आयु प्राप्‍त करता है, पर यदि वह जीवन के सुखों को भोग न कर पाए, मरने पर अन्‍तिम क्रिया भी उसे न प्राप्‍त हो, तो मैं यह कहूंगा : ऐसे मनुष्‍य से अधूरे माह का जन्‍मा मृत बच्‍चा श्रेष्‍ठ है।