मुझे जीवन से घृणा हो गई, क्योंकि आकाश के नीचे पृथ्वी पर किए जाने वाले सब कार्य मुझे बुरे लगने लगे। यह सब व्यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है। मैंने देखा कि मुझे अपने परिश्रम का फल उस उत्तराधिकारी के लिए छोड़ जाना होगा जो मेरे पीछे आनेवाला है। अत: मुझे अपने सम्पूर्ण परिश्रम से घृणा हो गई जो मैंने सूर्य के नीचे इस धरती पर किया था। कौन जानता है कि मेरा उत्तराधिकारी बुद्धिमान होगा अथवा मूर्ख? तो भी धरती पर वह मेरे समस्त परिश्रम के फल को भोगेगा और जो कुछ मैंने बुद्धि से संग्रह किया है वह उसका स्वामी होगा। अत: यह भी व्यर्थ है। इसलिए मैं सूर्य के नीचे धरती पर किए गए अपने सम्पूर्ण परिश्रम के प्रति निराश हो गया। उससे विमुख हो गया। कभी ऐसा भी होता है कि मनुष्य बुद्धि, ज्ञान और कौशल से परिश्रम करता है किन्तु वह उसका फल उस व्यक्ति के द्वारा भोगने के लिए छोड़ जाता है, जिसने उसके लिए कुछ भी परिश्रम नहीं किया। यह भी व्यर्थ है और बहुत बुरा है। सूर्य के नीचे पृथ्वी पर मन लगा कर किए गए परिश्रम से मनुष्य को क्या लाभ? सच पूछो तो उसके जीवन के सब दिन दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम सन्तोष नहीं, वरन् सन्ताप उत्पन्न करता है। रात में भी उसके मन को चैन नहीं मिलता। यह भी व्यर्थ है। मनुष्य के लिए इससे अधिक अच्छी बात और कोई नहीं कि वह खाए-पीए और आनन्द के साथ परिश्रम करे। किन्तु मैंने देखा है कि यह भी परमेश्वर के हाथ से प्राप्त होता है। क्योंकि परमेश्वर से दूर रहकर कौन व्यक्ति खा-पी सकता है, और आनन्द मना सकता है?
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