इस आकाश के नीचे पृथ्वी पर जो होता है, बुद्धि से उसकी खोजबीन करने और उसका भेद समझने के लिए मैंने अपना मन लगाया। यह एक कष्टप्रद कार्य है, जिसे परमेश्वर ने मनुष्यों को इसी कार्य में व्यस्त रहने के लिए सौंपा है। जो कुछ सूर्य के नीचे धरती पर होता है, वह सब मैंने देखा है। मुझे अनुभव हुआ कि यह सब निस्सार है− यह मानो हवा को पकड़ना है। जो कुटिल है, वह सीधा नहीं हो सकता, और जो है ही नहीं, वह गिना नहीं जा सकता। मैंने अपने हृदय से कहा, ‘देख, तूने बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया है, इतना कि तेरा ज्ञान उन सब राजाओं से बढ़ गया, जो तुझसे पहले यरूशलेम में हुए थे। तुझे बहुत बुद्धि और ज्ञान का अनुभव हो चुका है।” अत: मैंने अपना मन यह जानने में लगाया कि बुद्धि क्या है, पागलपन और मूर्खता क्या है। तब मुझे ज्ञात हुआ कि यह भी हवा को पकड़ना है। क्योंकि− अधिक बुद्धि अधिक कष्ट की जननी है। ज्ञान बढ़ानेवाला अपने दु:ख को भी बढ़ाता है।
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