व्‍यवस्‍था-विवरण 9:7-29

व्‍यवस्‍था-विवरण 9:7-29 HINCLBSI

‘स्‍मरण रखना और कभी मत भूलना कि तुमने निर्जन प्रदेश में अपने प्रभु परमेश्‍वर को क्रोधित किया था। जिस दिन से तुम मिस्र देश से बाहर निकले हो, और इस स्‍थान पर पहुँचे हो, तुम प्रभु से विद्रोह करते रहे हो। तुमने होरेब पर्वत पर प्रभु को क्रोधित किया था, और वह क्रुद्ध होकर तुम्‍हें नष्‍ट करना चाहता था। जब मैं पत्‍थर की पट्टियाँ, उस विधान की पट्टियाँ, जो प्रभु ने तुम्‍हारे साथ स्‍थापित किया, ग्रहण करने के लिए पहाड़ पर चढ़ा था, तब मैं चालीस दिन और चालीस रात तक पहाड़ पर रहा। मैंने न रोटी खायी और न पानी पिया। प्रभु ने मुझे अपने हाथ से लिखी हुई पत्‍थर की दो पट्टियाँ दीं। उन पर प्रभु के वे सब वचन लिखे हुए थे, जो उसने सभा के दिन पहाड़ पर अग्‍नि के मध्‍य से तुमसे कहे थे। प्रभु ने चालीस दिन और चालीस रात के अन्‍त में पत्‍थर की दो पट्टियाँ, विधान की पट्टियाँ मुझे दीं। तब प्रभु ने मुझसे कहा, “उठ और यहाँ से अविलम्‍ब नीचे जा; क्‍योंकि तेरे लोग, जिनको तू मिस्र देश से बाहर निकाल लाया है, भ्रष्‍ट हो गए हैं। वे उस मार्ग से शीघ्र ही भटक गए हैं, जिस पर चलने की आज्ञा मैंने उनको दी है। उन्‍होंने एक मूर्ति बनाई है।” ‘प्रभु ने मुझसे आगे कहा, “मैंने इन लोगों को देखा है, ये ऐंठी गरदन के लोग हैं। मुझे छोड़ दे कि मैं उनको नष्‍ट करूं और आकाश के नीचे से उनका नाम मिटा डालूं। किन्‍तु मैं तुझे उनसे अधिक शक्‍तिशाली और महान राष्‍ट्र बनाऊंगा।” अत: मैं लौट पड़ा और पहाड़ से नीचे उतर आया। पहाड़ आग में दहक रहा था। विधान की दोनों पट्टियाँ मेरे हाथों में थीं। मैंने तुम्‍हें देखा : तुम अपने प्रभु परमेश्‍वर के विरुद्ध पाप कर रहे थे। तुमने बछड़े की एक मूर्ति बनाई थी। तुम उस मार्ग से शीघ्र ही भटक गए थे, जिस पर चलने की आज्ञा प्रभु ने तुम्‍हें दी थी। तब मैंने दोनों पट्टियाँ पकड़ीं, और अपने दोनों हाथों से उन्‍हें फेंक दिया। तुम्‍हारी आंखों के सामने मैंने उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। मैं पहले के समान चालीस दिन और चालीस रात प्रभु के सम्‍मुख पड़ा रहा। मैंने न रोटी खाई, और न पानी पिया, क्‍योंकि जो कार्य प्रभु की दृष्‍टि में बुरा था, उसको करके तुमने पाप किया था और इस प्रकार तुमने प्रभु को चिढ़ाया था। मैं उसके क्रोध के कारण, उसके प्रचण्‍ड प्रकोप के कारण कांपने लगा। प्रभु तुमसे इतना क्रुद्ध था कि वह तुम्‍हें नष्‍ट करने को तत्‍पर हो गया। किन्‍तु प्रभु ने उस समय भी मेरी बात सुनी। प्रभु हारून से इतना क्रुद्ध था कि वह उसको नष्‍ट करने को तत्‍पर हो गया। मैंने उस समय हारून के लिए भी प्रार्थना की। मैंने तुम्‍हारी पापमय वस्‍तु, बछड़े की मूर्ति, जिसको तुमने बनाया था, ली और उसको आग में फेंक दिया, उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। मैंने उसको अच्‍छे से पीसा जब तक वह पिसकर चूर्ण न हो गई। तब मैंने उसके चूर्ण को पहाड़ से नीचे बहने वाली नदी में फेंक दिया। ‘तुमने तब्एराह, मस्‍सा और किबरोत-हत्तावाह में भी प्रभु को क्रोधित किया था। जब प्रभु ने तुम्‍हें कादेश-बर्नेअ के मरूद्यान से यह कहकर भेजा था, “आक्रमण करो और उस देश पर अधिकार कर लो, जिसको मैंने तुम्‍हें प्रदान किया है,” तब भी तुमने अपने प्रभु परमेश्‍वर के वचन से विद्रोह किया था। तुमने उस पर विश्‍वास नहीं किया, और न उसकी वाणी सुनी। जिस दिन से मैं तुम्‍हें जानता हूँ उस दिन से तुम प्रभु के प्रति विद्रोह कर रहे हो। ‘अत: मैं प्रभु के सम्‍मुख चालीस दिन और चालीस रात पड़ा रहा, क्‍योंकि प्रभु ने कहा था कि वह तुम्‍हें नष्‍ट कर देगा। मैंने प्रभु से प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू अपने निज लोगों को, अपनी निज सम्‍पत्ति को, नष्‍ट मत कर। उसको तूने अपने महान सामर्थ्य से मुक्‍त किया है। उसको तूने अपने भुजबल के द्वारा मिस्र देश से बाहर निकाला है। अपने सेवक अब्राहम, इसहाक और याकूब को स्‍मरण कर। इन लोगों के हठ, दुष्‍टता और पाप पर ध्‍यान मत दे। ऐसा न हो कि मिस्र देश के निवासी, जहाँ से तूनें इन्‍हें निकाला है, यह कहें : ‘प्रभु इन्‍हें उस देश में नहीं पहुंचा सका, जिसके विषय में वह इनसे बोला था। निस्‍सन्‍देह प्रभु इनसे घृणा करता है। सच पूछो तो निर्जन प्रदेश में इनका वध करने के लिए उसने इन्‍हें मिस्र देश से निकाला था।’ प्रभु, ये तेरे निज लोग, तेरी निज सम्‍पत्ति हैं। तू अपने महान सामर्थ्य से, उद्धार के हेतु फैले हुए अपने हाथों से इन्‍हें बाहर निकाल लाया है।”