‘तुम सावधान रहना! अपने प्रति सतर्क रहना! ऐसा न हो कि जो बातें तुम्हारी आंखों ने देखी हैं, उनको तुम भूल जाओ। ऐसा न हो कि वे जीवन भर के लिए तुम्हारे हृदय से दूर हो जाएं। वरन् तुम उन्हें अपने पुत्र-पुत्रियों और पौत्र-पौत्रियों को बताना। जिस दिन तुम अपने प्रभु परमेश्वर के सम्मुख होरेब पर्वत पर खड़े थे तब प्रभु ने मुझसे यह कहा था, “लोगों को मेरे पास एकत्र कर कि मैं उन्हें अपनी बात सुना सकूं, जिससे वे पृथ्वी पर जीवन-भर मेरी भक्ति करना सीखें और अपनी सन्तान को भी यह बात सिखाएं।” अत: तुम निकट आए, और पहाड़ के नीचे खड़े हो गए। तब पहाड़ अग्नि से जल उठा। अग्नि आकाश को स्पर्श करने लगी। धुएं, मेघ और सघन अन्धकार से पहाड़ अच्छादित हो गया। तत्पश्चात् प्रभु अग्नि के मध्य में से तुमसे बोला था। तुमने उसके शब्दों का स्वर तो सुना था, पर कोई आकृति नहीं देखी थी। केवल स्वर सुनाई दिया था। प्रभु ने अपना विधान अर्थात् दस आज्ञाएं तुम पर घोषित की थीं और उनका पालन करने का आदेश उसने तुम्हें दिया था। उसने उनको पत्थर की दो पट्टियों पर लिखा था। प्रभु ने उस समय मुझे आज्ञा दी थी कि मैं तुम्हें संविधि और न्याय-सिद्धान्त सिखाऊं, जिससे तुम उनके अनुसार उस देश में आचरण कर सको जिसको तुम अपने अधिकार में करने के लिए वहां प्रवेश कर रहे हो।
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