व्‍यवस्‍था-विवरण 30:11-20

व्‍यवस्‍था-विवरण 30:11-20 HINCLBSI

‘जिस आज्ञा-पालन का आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, वह न तेरी शक्‍ति से बाहर है, और न तेरी पहुँच से परे है। यह आज्ञा आकाश में नहीं है, कि तू कह सके, “कौन व्यक्‍ति हमारे लिए आकाश पर चढ़ेगा, और उसको उतारकर हमारे पास लाएगा, कि हम उसको सुन सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें?” यह आज्ञा समुद्र के उस पार भी नहीं है कि तू कह सके, “कौन व्यक्‍ति हमारे लिए समुद्र के उस पार जाएगा, और उसको हमारे पास लाएगा कि हम उसको सुन सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें?” इसके विपरीत प्रभु का वचन तेरे अत्‍यन्‍त निकट है। वह तेरे मुंह में, तेरे हृदय में है, ताकि तू उसके अनुसार कार्य कर सके। ‘देख, मैंने आज तेरे सम्‍मुख जीवन और मृत्‍यु, भलाई और बुराई रख दी है। यदि तू अपने प्रभु परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करेगा, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, यदि तू अपने प्रभु परमेश्‍वर से प्रेम करेगा और उसके मार्ग पर चलेगा, यदि तू उसकी आज्ञाओं, संविधियों और न्‍याय-सिद्धान्‍तों का पालन करेगा, तो तू जीवित रहेगा, और असंख्‍य होगा। प्रभु परमेश्‍वर तुझ को उस देश में, जिस पर अधिकार करने के लिए तू वहाँ जा रहा है, आशिष देगा। परन्‍तु यदि तेरा हृदय प्रभु की ओर से बदल जाएगा, तू उसकी वाणी नहीं सुनेगा, और दूसरे देवताओं की ओर खिंचकर उनकी वन्‍दना और पूजा करने लगेगा, तो मैं आज यह घोषित करता हूँ, तू निश्‍चय ही पूर्णत: मिट जाएगा। तू उस भूमि पर, जहाँ तू यर्दन नदी को पार कर अधिकार करने जा रहा है, अधिक दिन जीवित नहीं रहेगा। मैं आज आकाश और पृथ्‍वी को तेरे विरुद्ध साक्षी देने के लिए बुलाऊंगा कि मैंने तेरे सम्‍मुख जीवन और मृत्‍यु, आशिष और अभिशाप रख दिए हैं! इसलिए जीवन को चुन, जिससे तू और तेरे वंशज जीवित रहें, अपने प्रभु परमेश्‍वर से प्रेम करें, उसकी वाणी सुनें और उससे चिपके रहें। यही तेरे जीवन का अभिप्राय है। इस पर ही तेरी दीर्घायु निर्भर है। तब तू उस भूमि पर निवास कर सकेगा, जिसकी शपथ प्रभु ने तेरे पूर्वजों से, अब्राहम, इसहाक और याकूब से खाई थी कि वह उनको प्रदान करेगा।’