इसलिए किसी को यह अधिकार नहीं कि वह खान-पान, पर्व, अमावस्या या विश्राम-दिवस के विषय में आप लोगों पर दोष लगाये। ये सब आने वाली बातों की छाया मात्र हैं; ठोस वास्तविकता मसीह ही है। आप अपने को ऐसे लोगों द्वारा अपने पुरस्कार से वंचित न होने दें, जो तपस्या, स्वर्गदूतों की पूजा और अपने तथा-कथित दिव्य दृश्यों को अनुचित महत्व देते हैं। वे लोग अपनी सांसारिक बुद्धि के कारण घमण्ड से फूल जाते हैं और इस प्रकार शीर्ष अर्थात् मसीह से संयुक्त नहीं रह पाते। मसीह वह शीर्ष हैं जिससे समस्त शरीर सन्धियों और स्नायुओं द्वारा पोषित और संगठित हो कर परमेश्वर की इच्छानुसार बढ़ता है। यदि आप मसीह के साथ मर कर संसार के तत्वों से मुक्त हो गये हैं, तो आप उसके आदेशों का पालन क्यों करें, मानो आपका जीवन अब तक संसार के अधीन हो? “उस से परहेज करना, यह मत चखना, वह मत छूना”- ये सब मनुष्यों के आदेश हैं, मानवीय सिद्धांतों पर आधारित हैं और ऐसी वस्तुओं से सम्बन्ध रखते हैं, जो उपयोग में आने पर नष्ट हो जाती हैं। मनमानी व्यक्तिगत साधना, तपस्या और कठोर आत्म-संयम द्वारा ज्ञान का दिखावा तो होता है, किन्तु ये शरीर की वासनाओं का दमन करने में असमर्थ हैं।
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