‘धिक्कार है तुम्हें, ओ राष्ट्रों के प्रमुख इस्राएली राष्ट्र के नेताओ! तुम्हारे ही पास इस्राएली जनता न्याय के लिए आती है; पर तुम सियोन पर्वत पर निश्चिंत निवास करते हो; तुम्हें सामरी पहाड़ पर सुरक्षा का भरोसा है। कलनेह नगर को जाओ, और उसको देखो, और वहाँ से महानगर हमात को। तत्पश्चात् पलिश्ती देश के गत नगर को जाओ क्या तुम इन नगर-राज्यों से श्रेष्ठ हो? क्या तुम्हारी राज्य-सीमाएं इन राज्यों की सीमाओं से बड़ी हैं? तुम जनता से कहते हो, ‘दुर्दिन बहुत दूर हैं’; यों तुम हिंसा का शासन समीप ला रहे हो। ‘धिक्कार है तुम्हें, ओ हाथी दांत के पलंग पर सोनेवालो! शय्या पर आराम से पांव फैलाकर लेटनेवालो! भेड़शाला के मेमनों का कोमल मांस खानेवालो! पशुशाला के बछड़ों का मांस खानेवालो! तुम सारंगी की तान पर नए-नए गीत रचते हो। दाऊद के समान नए-नए बाजों का आविष्कार करते हो।
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