पतरस, चारों ओर दौरा करते हुए, किसी दिन लुद्दा नगर में रहने वाले संतों के यहाँ पहुँचे। वहाँ उन्हें एनियास नामक व्यक्ति मिला, जो लकवा रोग से पीड़ित था और आठ वर्षों से रोग-शैया पर पड़ा हुआ था। पतरस ने उससे कहा, “एनियास! येशु मसीह तुम को स्वस्थ कर रहे हैं। उठो और अपना बिस्तर स्वयं ठीक करो।” और वह उसी क्षण उठ खड़ा हुआ। लुद्दा और शारोन के सब निवासियों ने उसे देखा और वे प्रभु की ओर अभिमुख हो गये। याफा नगर में तबिथा नामक शिष्या रहती थी। तबिथा का यूनानी अनुवाद दोरकास (अर्थात् हरिणी) है। वह पुण्य-कर्म और दान-धर्म में लगी रहती थी। उन्हीं दिनों वह बीमार पड़ी और चल बसी। लोगों ने उसे नहला कर अटारी पर लिटा दिया। लुद्दा याफा नगर के समीप है। इसलिए जब शिष्यों ने सुना कि पतरस वहाँ हैं, तो उन्होंने दो आदमियों को भेज कर उनसे यह अनुरोध किया कि आप तुरन्त हमारे यहाँ आइए। अत: पतरस उसी समय उनके साथ चल दिये। जब वह याफा पहुँचे, तो लोग उन्हें अटारी पर ले गये। वहां सब विधवाएं रोती हुई उनके चारों ओर आ खड़ी हुईं और वे कुरते और कपड़े उन्हें दिखाने लगीं, जिन्हें दोरकास ने उनके साथ रहते समय बनाए थे। पतरस ने सब को बाहर किया और घुटने टेक कर प्रार्थना की। इसके बाद वह शव की ओर मुड़ कर बोले, “तबिथा, उठो!” उसने आँखें खोल दीं और पतरस को देखकर वह उठ बैठी। पतरस ने हाथ बढ़ा कर उसे उठाया और संतों तथा विधवाओं को बुला कर उसे जीता-जागता उनके सामने उपस्थित कर दिया। यह बात समस्त याफा में फैल गयी और बहुत-से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया। पतरस बहुत दिनों तक याफा में शिमोन नामक एक चर्मकार के यहाँ रहे।
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