जब शाऊल यरूशलेम पहुँचे, तो उन्होंने शिष्यों के समुदाय में सम्मिलित हो जाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे सब उन से डरते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह सचमुच येशु के शिष्य बन गये हैं। तब बरनबास उनको प्रेरितों के पास ले गये और बताया कि शाऊल ने मार्ग में किस प्रकार प्रभु के दर्शन किये और प्रभु ने उन से बात की। बरनबास ने उन्हें यह भी बताया कि किस प्रकार पौलुस ने दमिश्क में निर्भीकता से येशु के नाम का प्रचार किया। इसके पश्चात् शाऊल यरूशलेम में प्रेरितों के साथ आने-जाने लगे और निर्भीकता से येशु के नाम का प्रचार करने लगे। वह यूनानी-भाषी यहूदियों से बात-चीत और बहस किया करते थे, किन्तु वे लोग उन्हें मार डालना चाहते थे। जब विश्वासी भाई-बहिनों को इसका पता चला, तो वे शाऊल को कैसरिया बन्दरगाह ले गये और वहां से तरसुस नगर को भेज दिया।
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