शाऊल पर अब भी प्रभु के शिष्यों को धमकाने तथा मार डालने की धुन सवार थी। उसने प्रधान महापुरोहित के पास जा कर दमिश्क के सभागृहों के नाम पत्र माँगे, जिन में उसे यह अधिकार दिया गया कि यदि वह वहाँ इस पन्थ के अनुयायियों को पाये, तो वह उन्हें − चाहे वे पुरुष हों या स्त्रियाँ − बाँध कर यरूशलेम ले आये। जब वह यात्रा करते-करते दमिश्क नगर के पास पहुँचा, तो एकाएक आकाश से एक ज्योति उसके चारों ओर चमक उठी। वह भूमि पर गिर पड़ा और उसने एक आवाज सुनी। कोई उससे कह रहा था, “शाऊल! शाऊल! तू मुझे क्यों सता रहा है?” उसने कहा, “प्रभु! आप कौन हैं?” उत्तर मिला, “मैं येशु हूँ, जिस को तू सता रहा है। उठ और नगर में जा। तुझे जो करना है, वह तुझे बताया जायेगा।” उसके साथ यात्रा करने वाले अवाक् रह गये; क्योंकि उन्होंने आवाज तो सुनी, पर देखा किसी को नहीं। शाऊल भूमि से उठा। यद्यपि उसकी आँखें खुली थीं, किन्तु वह कुछ नहीं देख सका। इसलिए वे उसका हाथ पकड़ कर उसे दमिश्क नगर ले गये। वह तीन दिनों तक अन्धा रहा और उसने कुछ खाया-पिया नहीं। दमिश्क में हनन्याह नामक एक शिष्य रहता था। प्रभु ने उसे दर्शन दे कर कहा, “हनन्याह!” उसने उत्तर दिया, “प्रभु! प्रस्तुत हूँ।” प्रभु ने उससे कहा, “तुरन्त ‘सीधी’ नामक गली जाओ और यहूदा के घर में तरसुस-निवासी शाऊल का पता लगाओ। वह इस समय प्रार्थना कर रहा है। उसने दर्शन में देखा कि हनन्याह नामक मनुष्य उसके पास आ कर उस पर हाथ रख रहा है, जिससे उसे दृष्टि पुन: प्राप्त हो जाये।” परन्तु हनन्याह ने कहा, “प्रभु! मैंने अनेक लोगों से सुना है कि इस व्यक्ति ने यरूशलेम में आपके सन्तों पर कितना अत्याचार किया है। उसे महापुरोहितों से यह अधिकार मिला है कि वह यहाँ उन सब को गिरफ़्तार कर ले, जो आपके नाम की दुहाई देते हैं।” प्रभु ने हनन्याह से कहा, “जाओ। वह मेरा निर्वाचित पात्र है। वह अन्यजातियों, राजाओं तथा इस्राएलियों के सम्मुख मेरे नाम का प्रचार करेगा। मैं स्वयं उसे बताऊंगा कि उसे मेरे नाम के कारण कितना कष्ट भोगना होगा।” तब हनन्याह चला गया और उसने घर में प्रवेश किया। उसने शाऊल पर हाथ रख कर कहा, “भाई शाऊल! जिस प्रभु येशु ने आप को यहां आते समय मार्ग में दर्शन दिये थे, उन्होंने मुझे भेजा है, ताकि आप को दृष्टि पुन: प्राप्त हो और आप पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जायें।” तत्क्षण उसकी आंखों से छिलके-जैसे गिरे और उसे दृष्टि पुन: प्राप्त हो गयी। वह उठा और उसने बपतिस्मा ग्रहण किया। उसने भोजन किया और उसे बल प्राप्त हुआ। शाऊल कुछ समय तक दमिश्क में शिष्यों के साथ रहे। वह शीघ्र ही सभागृहों में येशु के विषय में प्रचार करने लगे कि वही परमेश्वर के पुत्र हैं। सब सुनने वाले अचम्भे में पड़ कर कहते थे, “क्या यह वह व्यक्ति नहीं है, जो यरूशलेम में इस नाम की भक्ति करने वालों को नष्ट कर रहा था? क्या वह यहाँ इसलिए नहीं आया था कि वह उन्हें बाँध कर महापुरोहितों के पास ले जाये?”
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