उन दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तो यूनानी-भाषी शिष्यों ने इब्रानी-भाषी शिष्यों के विरुद्ध यह शिकायत की कि दैनिक दान-वितरण में उनकी विधवाओं की उपेक्षा हो रही है। इसलिए बारह प्रेरितों ने शिष्यों की सभा बुला कर कहा, “यह उचित नहीं है कि हम खिलाने-पिलाने की सेवा के लिए परमेश्वर का वचन सुनाना छोड़ दें। अत: भाई-बहिनो, आप लोग अपने बीच से सात सच्चरित्र पुरुषों को चुन लीजिए, जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों। हम उन्हें इस कार्य के लिए नियुक्त करेंगे, और हम लोग प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।” यह बात समस्त सभा को अच्छी लगी। उन्होंने स्तीफनुस नामक व्यक्ति को, जो विश्वास तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, तथा फ़िलिप, प्रोखुरुस, निकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया-निवासी नवयहूदी निकोलास को चुना और उन्हें प्रेरितों के सामने उपस्थित किया। प्रेरितों ने प्रार्थना करने के बाद उन पर अपने हाथ रखे। परमेश्वर का वचन फैलता गया। यरूशलेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई; और बहुत-से पुरोहितों ने इस विश्वास को स्वीकार कर लिया।
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