दूसरे दिन यरूशलेम में शासकों, धर्मवृद्धों और शास्त्रियों की सभा हुई। प्रधान महापुरोहित हन्ना, काइफा, योहानान, सिकन्दर और महापुरोहित-वंश के सभी सदस्य वहाँ उपस्थित थे। वे पतरस तथा योहन को बीच में खड़ा कर इस प्रकार उन से पूछ-ताछ करने लगे, “तुम लोगों ने किस सामर्थ्य से या किसके नाम से यह काम किया है?” पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर उन से कहा, “जनता के शासको और धर्मवृद्धो! हमने एक दुर्बल मनुष्य का उपकार किया है और आज हम से पूछ-ताछ की जा रही है कि वह किस तरह रोग-मुक्त हो गया है। आप सभी लोग और इस्राएल की सारी प्रजा यह जान लें कि नासरत-निवासी येशु मसीह के नाम से यह मनुष्य स्वस्थ हो कर आप लोगों के सामने खड़ा है। उन्हीं येशु को आप लोगों ने क्रूस पर चढ़ा दिया था, किन्तु परमेश्वर ने उन्हें मृतकों में से पुनर्जीवित किया। यह वह पत्थर हैं, ‘जिसे आप, कारीगरों ने तुच्छ समझा था और जो कोने की नींव का पत्थर बन गया है।’ किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं है; क्योंकि समस्त संसार में मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है।” पतरस और योहन की निर्भीकता देख कर और यह जानकर कि वे अशििक्षत तथा साधारण मनुष्य हैं, धर्म-महासभा के सदस्य अचम्भे में पड़ गये। फिर, वे पहचान गये कि ये तो येशु के साथ रह चुके हैं
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