पतरस और योहन दोपहर तीन बजे की प्रार्थना के समय मन्दिर जा रहे थे। लोग एक मनुष्य को ले जा रहे थे, जो जन्म से लँगड़ा था। वे उसे प्रतिदिन ला कर मन्दिर के ‘सुन्दर’ नामक फाटक के पास छोड़ देते थे, जिससे वह मन्दिर के अन्दर जाने वालों से भीख माँग सके। जब उसने पतरस और योहन को मन्दिर में प्रवेश करते देखा, तो उन से भीख माँगी। पतरस और योहन ने उसे ध्यान से देखा। पतरस ने कहा, “हमारी ओर देखो।” वह कुछ पाने की आशा से उनकी ओर ताकने लगा। किन्तु पतरस ने कहा, “मेरे पास न तो चाँदी है और न सोना। मेरे पास जो है, वही तुम्हें देता हूँ : नासरत-निवासी येशु मसीह के नाम से उठो और चलो-फिरो!” और उसने उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसे उठाया। उसी क्षण लँगड़े के पैरों और टखनों में बल आ गया। वह उछल कर खड़ा हो गया और चलने-फिरने लगा। वह चलते, उछलते तथा परमेश्वर की स्तुति करते हुए उनके साथ मन्दिर में आया। सारी जनता ने उस को चलते-फिरते तथा परमेश्वर की स्तुति करते हुए देखा। लोग उसे पहचान गये कि यह वही है, जो मन्दिर के ‘सुन्दर’ फाटक के पास बैठ कर भीख माँगा करता था और यह देख कर कि उसके साथ क्या हुआ है, वे अचम्भे में पड़ कर चकित हो गये।
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