अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “मैं भी उस व्यक्ति की बातें सुनना चाहता हूँ।” फ़ेस्तुस ने कहा, “आप कल सुन लीजिए।” दूसरे दिन अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम के साथ आये। उन्होंने सेना-नायकों तथा प्रतिष्ठित नागरिकों के साथ सभाभवन में प्रवेश किया। फ़ेस्तुस के आदेशानुसार पौलुस को प्रस्तुत किया गया। फ़ेस्तुस ने कहा, “महाराज अग्रिप्पा और यहाँ उपस्थित सब सज्जनो! आप लोग इस व्यक्ति को देखिए, जिसके सम्बन्ध में यरूशलेम में और यहाँ भी समस्त यहूदी समुदाय ने मुझ से चिल्ला-चिल्लाकर मांग की कि यह व्यक्ति जीवित रहने योग्य नहीं है। किन्तु मैंने इस में प्राणदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं पाया और जब इसने महाराजाधिराज की दुहाई दी, तो मैंने इसे भेजने का निश्चय किया। हमारे प्रभु सम्राट को इसके विषय में लिखने की कोई निश्चित सामग्री मेरे पास नहीं है; इसलिए मैंने इस आशा से आप लोगों के सामने और विशेष रूप से आप ही के सामने, हे महाराज अग्रिप्पा! इस व्यक्ति को उपस्थित किया है, कि इसकी जाँच के बाद मुझे कुछ लिखने का आधार मिल जाये। किसी बन्दी को भेजना और उस पर लगाये अभियोगों का उल्लेख नहीं करना, यह मुझे असंगत लगता है।”
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