त्रोआस से हमने समुद्र-यात्रा आरम्भ की। हम जलयान से सीधे समुथ्राके तक गये और दूसरे दिन नेआपुलिस और वहाँ से फिलिप्पी पहुँचे। फिलिप्पी मकिदुनिया का मुख्य नगर और रोमन उपनिवेश है। हम कुछ दिन फिलिप्पी नगर में रहे। विश्राम के दिन हम यह समझ कर शहर के बाहर नदी के तट पर आये कि वहाँ कोई प्रार्थना-गृह होगा। हम बैठ गये और वहाँ एकत्र स्त्रियों से बातचीत करने लगे। उन महिलाओं में एक का नाम लुदिया था। वह थुआतीरा नगर की रहने वाली थी। वह बहुमूल्य बैंगनी कपड़ों का व्यापार करती और परमेश्वर की आराधना करती थी। वह हमारी बातें सुन रही थी। प्रभु ने उसके हृदय का द्वार खोला ताकि वह पौलुस की बातों को उत्सुकता से सुने। जब उसने तथा उसके परिवार ने बपतिस्मा ग्रहण कर लिया तब लुदिया ने हमसे यह अनुरोध किया, “यदि आप लोग मानते हैं कि मैं सचमुच प्रभु में विश्वास करती हूँ तो आइए, मेरे यहाँ ठहरिए।” और उसने हमें बाध्य कर दिया। हम किसी दिन प्रार्थना-गृह जा रहे थे कि एक कम उम्र वाली दासी से हमारी भेंट हो गयी। उसमें भविष्य बताने वाली आत्मा थी। और वह भविष्य बता-बता कर अपने मालिकों के लिए बहुत कमाती थी। वह पौलुस और हम लोगों के पीछे लग गई और चिल्लाने लगी, “ये लोग सर्वोच्च परमेश्वर के सेवक हैं और आप लोगों को मुक्ति का मार्ग बताते हैं।” वह बहुत दिनों तक ऐसा ही करती रही। अन्त में पौलुस तंग आ गये और उन्होंने मुड़ कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे येशु मसीह के नाम से आदेश देता हूँ कि तू इसमें से निकल जा!” और वह उसी क्षण उस लड़की में से निकल गयी। जब उसके मालिकों ने देखा कि उनकी आमदनी की आशा चली गयी, तो वे पौलुस तथा सीलास को पकड़ कर चौक में अधिकारियों के पास खींच ले गये। उन्होंने पौलुस और सीलास को दण्डाधिकारियों के सामने पेश किया और कहा, “ये व्यक्ति हमारे शहर में अशान्ति फैला रहे हैं। ये यहूदी हैं और ऐसी प्रथाओं का प्रचार करते हैं, जिन्हें अपनाना या जिन पर चलना हम रोमियों के लिए उचित नहीं है।” भीड़ भी उनके विरोध में एकत्र हो गयी। तब दण्डाधिकारियों ने उनके कपड़े फाड़ डाले और उन्हें बेंत लगाने का आदेश दिया। उन्होंने पौलुस और सीलास को बेंतों से बहुत मारा और बन्दीगृह में डाल दिया। उन्होंने बन्दीगृह के अधीक्षक को आदेश दिया कि वह सावधानी से उनकी रखवाली करे। अधीक्षक ने यह आदेश पाकर उन्हें भीतरी बन्दीगृह में रखा और उनके पैर काठ में जकड़ दिये। आधी रात के समय जब पौलुस तथा सीलास प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्वर की स्तुति गा रहे थे और कैदी उन्हें सुन रहे थे तो एकाएक इतना भारी भूकम्प हुआ कि बन्दीगृह की नींव हिल गयी। उसी क्षण सब द्वार खुल गये और सब कैदियों की बेड़ियाँ खुल गयीं। बन्दीगृह का अधीक्षक जाग उठा और बन्दीगृह के द्वार खुले देख कर समझा कि कैदी भाग गये हैं। इसलिए उसने तलवार खींच कर आत्महत्या करनी चाही; किन्तु पौलुस ने ऊंचे स्वर से पुकार कर कहा, “अपने आपको कोई हानि न पहुँचाओ। हम सब यहीं हैं।” तब अधीक्षक दीपक मँगा कर भीतर दौड़ा और काँपते हुए पौलुस तथा सीलास के चरणों पर गिर पड़ा। उसने उन्हें बाहर ले जा कर कहा, “सज्जनो, मुक्ति प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?” उन्होंने उत्तर दिया, “आप प्रभु येशु पर विश्वास कीजिए, तो आप को और आपके परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी।” उन्होंने अधीक्षक को और उसके परिवार के सब सदस्यों को परमेश्वर का वचन सुनाया। उसने रात को उसी घड़ी उन्हें ले जा कर उनके घाव धोये। इसके तुरंत बाद उसने और उसके सारे परिवार ने बपतिस्मा ग्रहण किया। तब उसने पौलुस और सीलास को अपने यहाँ ले जा कर भोजन कराया और अपने सारे परिवार के साथ आनन्द मनाया; क्योंकि उसने परमेश्वर पर विश्वास किया था।
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