प्रेरितों 11:1-18

प्रेरितों 11:1-18 HINCLBSI

प्रेरितों तथा यहूदा-प्रदेश के विश्‍वासी भाई-बहिनों को यह पता चला कि गैर-यहूदियों ने भी परमेश्‍वर का वचन स्‍वीकार कर लिया है। अत: जब पतरस यरूशलेम पहुँचे, तो यहूदी विश्‍वासियों ने आलोचना करते हुए कहा, “आपने खतना-विहीन व्यक्‍तियों के घर में क्‍यों प्रवेश किया और उनके साथ क्‍यों भोजन किया?” इस पर पतरस ने क्रम से सारी बातें समझाते हुए कहा, “मैं याफा नगर में प्रार्थना करते समय आत्‍मा से आविष्‍ट हो गया। मैंने दर्शन देखा कि लम्‍बी-चौड़ी चादर-जैसा कोई पात्र स्‍वर्ग से उतर रहा है और उसके चारों कोने मेरे पास नीचे रखे जा रहे हैं। मैंने उस पर दृष्‍टि गड़ायी और ध्‍यान से देखा कि उसमें पृथ्‍वी के चौपाये, जंगली जानवर, रेंगने वाले जीव-जन्‍तु और आकाश के पक्षी हैं। मुझे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई दी, ‘पतरस! उठो, इन्‍हें मारो और खाओ।’ मैंने कहा, ‘प्रभु! कभी नहीं! मेरे मुँह में कभी कोई अपवित्र अथवा अशुद्ध वस्‍तु नहीं पड़ी।’ उत्तर में स्‍वर्ग से दूसरी बार यह वाणी सुनाई दी, ‘परमेश्‍वर ने जिसे शुद्ध घोषित किया, तुम उसे अशुद्ध मत कहो।’ तीन बार ऐसा ही हुआ और इसके पश्‍चात् सब कुछ फिर स्‍वर्ग में ऊपर खींच लिया गया। उसी समय कैसरिया से मेरे पास भेजे हुए तीन मनुष्‍य उस घर के सामने आ पहुँचे, जहाँ हम ठहरे हुए थे। आत्‍मा ने मुझे आदेश दिया कि मैं बिना भेद-भाव उनके साथ जाऊं। ये छ: भाई मेरे साथ हो लिये और हमने उस व्यक्‍ति के घर में प्रवेश किया। उसने हमें बताया कि उसने अपने घर में एक स्‍वर्गदूत को खड़े हुए देखा, जिसने उससे यह कहा, ‘किसी को याफा नगर भेजिए और सिमोन को, जो पतरस कहलाते हैं, बुलाइए। वह जो उपदेश देंगे, उसके द्वारा आप को और आपके सारे परिवार को मुक्‍ति प्राप्‍त होगी।’ “मैंने बोलना आरम्‍भ किया ही था कि पवित्र आत्‍मा, जैसे कलीसिया के प्रारम्‍भ में हम पर उतरा था, वैसे ही उन लोगों पर उतर आया। उस समय मुझे प्रभु का वह कथन स्‍मरण हुआ, ‘योहन ने तो जल से बपतिस्‍मा दिया, परन्‍तु तुम पवित्र आत्‍मा से बपतिस्‍मा पाओगे।’ जब परमेश्‍वर ने उन्‍हें वही वरदान दिया, जो हमें प्रभु येशु मसीह में विश्‍वास करने वालों को मिला है, तो मैं कौन था जो परमेश्‍वर के मार्ग में बाधा डालता?” ये बातें सुन कर यहूदी विश्‍वासी शान्‍त हो गये और उन्‍होंने यह कहते हुए परमेश्‍वर की स्‍तुति की, “परमेश्‍वर ने गैर-यहूदियों को भी यह वरदान दिया कि वे हृदय-परिवर्तन कर जीवन प्राप्‍त करें।”